उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
मुंशी–समझ गया, यह तो सहज ही में मालूम हो सकता है।
ठाकुर–ज़रा इसका भी पता लगाइएगा कि आजकल उनका भोजन कौन बनाता है। पहले तो उनके मैके ही की कोई स्त्री थी। मालूम नहीं, अब भी वही बनाती है या कोई दूसरा रसोइया रखा गया है।
वज्रधर ने ठाकुर साहब के मन का भाव ताड़कर दृढ़ता से कहा–महाराज, क्षमा कीजिएगा, मैं आपका सेवक हूँ, पर रानीजी का भी सेवक हूँ। उनका शत्रु नहीं हूँ। आप और वह दोनों सिंह और सिंहनी की भाँति लड़ सकते हैं। मैं गीदड़ की भाँति अपने स्वार्थ के लिए बीच में कूदना अपमानजनक समझता हूँ। मैं वहाँ तक तो सहर्ष आपकी सेवा कर सकता हूँ, जहाँ तक रानीजी का अहित न हो। मैं तो दोनों ही द्वारों का भिक्षुक हूँ।
ठाकुर साहब दिल में शरमाएँ, पर इसके साथ मुंशीजी पर उनका विश्वास और भी दृढ़ हो गया। बात बनाते हुए बोले–नहीं-नहीं, मेरा मतलब आपने गलत समझा! छीः! छीः! मैं इतना नीच नहीं। मैं केवल इसलिए पूछता था कि नया रसोइया कुलीन है या नहीं। अगर वह सुपात्र है, तो वही मेरा भी भोजन बनाता रहेगा।
ठाकुर साब ने बात तो बनाई पर उन्हें स्वयं ज्ञात हो गया कि बात बनी नहीं। अपनी झेंप मिटाने को वह एक समाचार पत्र देखने लगे, मानो उन्हें विश्वास हो गया कि मुंशीजी ने उनकी बात सच मान ली।
इतने में हिरिया ने आकर मुँशीजी से कहा–बाबा, मालकिन ने कहा है कि आप जाने लगें तो मुझसे मिल लीजिएगा।
ठाकुर साहब ने गरजकर कहा–ऐसी क्या बात है, जिसको कहने की इतनी जल्दी है। इन बेचारे को देर हो रही है, कुछ निठल्ले थोड़े ही हैं कि बैठे-बैठे औरतों को रोना सुना करें। जा अन्दर बैठ।
यह कहकर ठाकुर साहब उठ खड़े हुए, मानों मुंशीजी को विदा कर रहे हैं। वह वसुमती को उनसे बातें करने का अवसर न देना चाहते थे। मुंशीजी को भी अब विवश होकर विदा माँगनी पड़ी।
मुंशीजी यहाँ से चले तो उनके दिल में एक शंका समायी हुई थी कि ठाकुर साहब कहीं मुझसे नाराज़ तो नहीं हो गए। हाँ, इतना संतोष था कि मैंने कोई बुरा काम नहीं किया। यदि वह सच्ची बात कहने के लिए नाराज़ हो जाते हैं, तो हो जायें। मैं क्यों रानी का बुरा चेतूँ। बहुत होगा, राजा होने पर मुझे जवाब दे देंगे। इसकी क्या चिन्ता। इस विचार से मुंशीजी और अकड़कर बैठ गए। वह इतने खुश थे, मानो हवा में उड़े जा रहे हैं। उनकी आत्मा कभी इतनी गौरवोन्मत्त न हुई थी। चिन्ताओं को कभी उन्होंने इतना तुच्छ न समझा था।
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