उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
|
8 पाठकों को प्रिय 320 पाठक हैं |
राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
चक्रधर–(शरमाकर) किसी के मन का हाल मैं क्या जानूँ!
मनोरमा ने अत्यन्त सरल भाव से कहा–सब मालूम हो जाता है। आप मुझसे बता नहीं रहे हैं। कम-से-कम उनकी इच्छा तो मालूम हो ही गई होगी।। मैं तो समझती हूँ, जो विवाह लड़की की इच्छा के विरूद्ध किया जाता है, वह विवाह ही नहीं है। आपका क्या विचार है?
चक्रधर बड़े असमंजस में पड़े। मनोरमा से ऐसी बातें करते उन्हें संकोच होता था। डरते थे कि कहीं ठाकुर साहब को ख़बर मिल जाए। सरला मनोरमा ही कह दे–तो वह समझेंगे, मैं इसके सामाजिक विचारों में क्रान्ति पैदा करना चाहता हूँ। अब तक उन्हें ज्ञान न था कि ठाकुर साहब किस विचारों के आदमी हैं। हाँ, उनके गंगा-स्नान से आभास होता था कि वह सनातन धर्म के भक्त हैं। सिर झुकाकर बोले–मनोरमा, हमारे यहाँ विवाह का आधार प्रेम और इच्छा पर नहीं, धर्म और कर्तव्य पर रखा गया है। इच्छा चंचल है, क्षण-क्षण में बदलती रहती है। कर्तव्य स्थायी है, उसमें कभी परिवर्तन नहीं होता।
मनोरमा–अगर यह बात है, तो पुराने जमाने में स्वयंवर क्यों होते थे?
चक्रधर–स्वयंवर में कन्या की इच्छा ही सर्वप्रधान नहीं होती थी। वह वीर-युग था और वीरता ही मनुष्य का सबसे उज्ज्वल गुण समझा जाता था। लोग आजकल वैवाहिक प्रथा सुधारने का प्रयत्न तो कर रहे हैं।
मनोरमा–जानती हूँ, लेकिन कहीं सुधार हो रहा है? माता-पिता धन देखकर लट्टू हो जाते हैं। इच्छा अस्थायी है, मानती हूँ, लेकिन एक बार अनुमति देने के बाद फिर लड़की को पछताने के लिए कोई हीला नहीं रहता।
चक्रधर–अपने मन को समझाने के लिए तर्कों की कभी कमी नहीं रहती, मनोरमा! कर्तव्य ही ऐसा आदर्श है, जो कभी धोखा नहीं दे सकता।
मनोरमा–हाँ, लेकिन आदर्श तो आदर्श ही रहता है, यथार्थ नहीं हो सकता। (मुस्कुराकर) यदि आप ही का विवाह किसी कानी, काली-कलूटी स्त्री से हो जाए, तो क्या आपको दुःख न होगा? बोलिए! क्या आप समझते हैं कि लड़की का विवाह किसी खूसट से हो जाता है, तो उसे दुःख नहीं होता। उसका बस चले तो वह पति का मुँह तक न देखे। लेकिन इन बातों को जाने दाजिए। वधूजी बहुत सुन्दर हैं?
चक्रधर ने बात टालने के लिए कहा–सुन्दरता मनोभावों पर होती है। माता अपने कुरूप बालक को भी सुन्दर समझती है।
|