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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


यह कहकर मनोरमा ने वह लेख उठा लिया और तुरन्त फाड़कर खिड़की के बाहर फेंक दिया। चक्रधर ‘हाँ-हाँ’ करते रह गए। जब वह फिर अपनी जगह पर आकर बैठी, तो चक्रधर ने गम्भीर स्वर से कहा–तुम्हारे मन में ऐसे कुत्सित विचारों को स्थान पाते देखकर मुझे दुःख होता है।

मनोरमा ने सजल नयन होकर कहा–अब मैं ऐसा लेख कभी न लिखूँगी।

चक्रधर–लिखने की बात नहीं हैं तुम्हारे मन में ऐसे भाव आने ही न चाहिए। कल पर हम विजय पाते हैं, अपनी सुकीर्ति से, यश से, व्रत से। परोपकार ही अमरत्व प्रदान करता है। काल पर विजय पाने का अर्थ यह नहीं है कि कृत्रिम साधनों से भोग-विलास में प्रवृत हो, वृद्ध होकर जवान बनने का स्वप्न देखें और अपनी आत्मा को धोखा दें। लोकमत पर विजय पाने का अर्थ है, अपने सद्विचारों और सत्कर्मों से जनता का आदर और सम्मान प्राप्त करना। आत्मा पर विजय पाने का आशय निर्लज्जता या विषय-वासना नहीं, बल्कि इच्छाओं का दमन करना और कुवृतियों को रोकना है। यह मैं नहीं कहता कि तुमने जो कुछ लिखा है, वह यथार्थ नहीं है। उनकी नग्न यथार्थता ही ने उन्हें इतना घृणित बना दिया। यथार्थ का रूप अत्यन्त भयंकर होता है और हम यथार्थ को ही आदर्श मान लें, तो संसार नरक के तुल्य हो जाये। हमारी दृष्टि मन की दुर्बलता पर पड़नी चाहिए। बल्कि दुर्बलताओं में भी सत्य और सुन्दर की खोज करनी चाहिए। दुर्बलताओं की ओर हमारी प्रवृत्ति स्वयं इतनी बलवती है कि उसे उधर ढकेलने की ज़रूरत नहीं। ऐश्वर्य का एक सुख और है, जिसे तुमने न जाने क्यों छोड़ दिया? जानती हो, वह क्या है?

मनोरमा–अब उसकी और व्याख्या करके मुझे लज्जित न कीजिए।

चक्रधर–तुम्हें लज्जित करने के लिए नहीं, तुम्हारा मनोरंजन करने के लिए बताता हूँ। वह पुरानी बातों को भूल जाना है। ऐश्वर्य पाते ही हमें अपना पूर्व जीवन विस्मृत हो जाता है। हम अपने पुराने हमजोलियों को नहीं पहचानते। ऐसे भूल जाते हैं, मानो कभी देखा ही न था। मेरे जितने धनी मित्र थे, वे मुझे भूल गए। कभी सलाम करता हूँ, तो हाथ तक नहीं उठाते। ऐश्वर्य का यह एक खास लक्षण है। कौन कहता है कि कुछ दिनों के बाद तुम्हीं मुझे न भूल जाओगी!

मनोरमा–मैं आपको भूल जाऊँगी!  असम्भव है। मुझे तो ऐसा मालूम होता है कि पूर्व जन्म में भी मेरा और आपका किसी-न-किसी रूप में साथ था। पहले ही दिन से मुझे आपसे इतनी श्रद्धा हो गई, मानों पुराना परिचय हो। मैं जब कभी कोई बात सोचती हूँ, तो आप उसमें अवश्य पहुँच जाते हैं। अगर ऐश्वर्य पाकर आपको भूल जाने की सम्भावना हो, तो मैं उसकी ओर आँख उठाकर भी न देखूँगी।

चक्रधर–ने मुस्कुराकर कहा–जब हृदय यही रहे, तब तो।

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