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उपन्यास >> निर्मला (उपन्यास)

निर्मला (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :304
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8556
आईएसबीएन :978-1-61301-175

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अद्भुत कथाशिल्पी प्रेमचंद की कृति ‘निर्मला’ दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है…


क्या जीवन में इससे बड़ी विपत्ती की कल्पना की जा सकती है? क्या संसार में इससे घोरतर नीचता की कल्पना हो सकती है? आज तक किसी पिता ने अपने पुत्र पर इतना निर्दय कलंक लगाया होगा। जिसके चरित्र की सभी प्रशंसा करते थे, जो अन्य युवकों के लिए आदर्श समझा जाता था, जिसने कभी अपवित्र विचारों को अपने पास नहीं फटकने दिया, उसी पर यह घोरतर कलंक! मंसाराम को ऐसा मालूम हुआ, मानो उसका दिल फटा जाता है।

दूसरी घंटी भी बज गई। लड़के अपने -अपने कमरे में गए; पर मंसाराम हथेली पर गाल रखे अनिमेष नेत्रों से भूमि की ओर देख रहा था, मानो उसका सर्वस्व जलमग्न हो गया हो, मानो वह किसी को मुँह न दिखा सकता हो। स्कूल में गैरहाजिरी हो जायगी। जुर्माना हो जायेगा; इसकी उसे चिन्ता नहीं है; जब उसका सर्वस्व लुट गया, तो अब इन छोटी-छोटी बातों का क्या भय? इतना बड़ा कलंक लगने पर भी अगर जीता रहूँ, तो मेरे जीने को धिक्कार है।

उसी शोकातिरेक दिशा में वह चिल्ला पड़ा-माताजी! तुम कहाँ हो? तुम्हारा बेटा, जिस पर तुम प्राण देती थीं-जिसे तुम अपने जीवन का आधार समझती थीं, आज घोर संकट में है। उसी का पिता उसकी गर्दन पर छुरी फेर रहा है। हाय, तुम कहाँ हो?

मंसाराम फिर शातचित्त से सोचने लगा-मुझ पर यह सन्देह क्यों हो रहा है? इसका क्या कारण है मुझमें ऐसी कौन-सी बात उन्होंने देखी, जिससे उन्हें यह सन्देह हुआ? वह हमारे पिता हैं, मेरे शत्रु हैं, जो अनायास ही मुझ पर यह अपराध लगाने बैठ जायँ। जरूर उन्होंने कोई न कोई बात देखी या सुनी है उनका मुझ पर कितना स्नेह था! मेरे बगैर भोजन न करने जाते थे, वही मेरे शत्रु हो जायँ, यह बात अकारण नहीं हो सकती।

अच्छा, इस सन्देह का बीजारोपण किस दिन हुआ है? मुझे बोर्डिंग हाउस में ठहराने की बात तो पीछे की है। उस दिन रात को वह कमरे में आकर मेरी परीक्षा लेने लगे थे उसी दिन उनकी त्योरियाँ बदली हुई थीं। उस दिन ऐसी कौन सी बात हुई जो अप्रिय लगी हो। मैं नई अम्माँ से कुछ खाने को माँगने गया था बाबूजी उस समय वहाँ बैठे थे। हाँ, अब याद आती है, उसी वक्त उनका चेहरा तमतमा गया था। उसी दिन से नई अम्माँ ने मुझसे पढ़ना छोड़ दिया। अगर मैं जानता कि मेरा घर में आना -जाना अम्माँ जी से कुछ कहना -सुनना और उन्हें पढ़ाना- लिखना पिता जी को बुरा लगता है, तो आज क्यों यह नौबत आती? और नई अम्माँ! उन पर क्या बात रही होगी?

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