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पाँच फूल (कहानियाँ)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8564
आईएसबीएन :978-1-61301-105

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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ


इसी समय एक अफ्रीदी रमणी धीरे-धीरे आकर सरदार साहब के मकान के सामने खड़ी हो गयी। ज्योंही सरदार साहब ने देखा; उनका मुँह सफेद पड़ गया। उनकी भयभीत दृष्टि उनकी ओर से फिरकर मेरी ओर हो गयी! मैं भी आश्चर्य से उसके मुँह की ओर निहारने लगा। उस रमणी का-सा सुगठित शरीर मरदों का भी कम होता है। खाकी रंग के मोटे कपड़े का पायजामा और नीले रंग का मोटा कुरता पहने हुए थी। बलूची औरतों की तरह सिर पर रुमाल बाँध रक्खा था। रंग चम्पई था और यौवन की आभा फूट-फूटकर बाहर निकली पड़ती थी, इस समय उसकी आँखों में ऐसी भीषणता थी, किसी के दिल में भय का संचार करती। रमणी की आंखें सरदार साहब की ओर से फिरकर मेरी ओर आईं और उसने यों घूरना शुरू किया कि मैं भी भयभीत हो गया। रमणी ने सरदार साहब की ओर देखा और फिर जमीन पर थूक दिया और देखती हुई धीरे-धीरे दूसरी ओर चली गई।

रमणी को जाते देखकर सरदार साहब की जान–में-जान आई। मेरे सिर पर से भी एक बोझ हट गया।

मैंने सरदार साहब से पूछा—क्यों, क्या आप इसे जानते हैं? सरदार साहब ने एक गहरी ठंडी साँस लेकर कहा—हाँ, बखूबी। एक समय था, जब यह मुझ पर जान देती थी और वास्तव में अपनी जान पर खेलकर मेरी रक्षा भी की थी; लेकिन अब मेरी सूरत से नफरत है। इसी ने मेरी स्त्री की हत्या की है। इसे जब कभी देखता हूँ, मेरे होश-हवास काफूर हो जाते हैं और वही भयानक दृश्य मेरी आँखों के सामने नाचने लगता है।

मैंने भय–विह्वल स्वर में पूछा—सरदार साहब, उसने मेरी ओर भी तो बड़ी भयानक दृष्टि से देखा था। न-मालूम क्यों मेरे भी रोयें खड़े हो गये थे।

सरदार साहब ने सिर हिलाते हुए बड़ी गम्भीरता से कहा—असदखाँ, तुम भी होशियार रहो। शायद इस बूढ़े अफ्रीदी से इसका भी कोई सम्पर्क है। मुमकिन हो, यह उसका भाई या बाप हो। तुम्हारी ओर उसका देखना कोई मानी रखता है। बड़ी भयानक स्त्री है।

सरदार साहब की बात सुनकर मेरी नस-नस काँप उठी। मैंने बातों का सिलसिला दूसरी ओर फेरते हुए कहा—सरदार साहब, आप इसको पुलिस के हवाले क्यों नहीं कर देते। इसको फाँसी हो जायगी।

सरदार साहब ने कहा—भाई असदखाँ, इसने मेरे प्राण बचाये थे और शायद अब भी मुझे चाहती है। इसकी कथा बहुत लम्बी है। कभी अवकाश मिला, तो कहूँगा।

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