लोगों की राय

कहानी संग्रह >> पाँच फूल (कहानियाँ)

पाँच फूल (कहानियाँ)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8564
आईएसबीएन :978-1-61301-105

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

425 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ


सरदार की बातों से मुझे भी कुतूहल हो रहा था। मैंने उनसे यह वृत्तान्त सुनाने के लिए आग्रह करना शुरू किया। पहले तो उन्होंने टालना चाहा, पर जब मैंने बहुत जोर दिया तो विवश होकर बोले—असद, मैं तुम्हे अपना भाई समझता हूँ, इसलिए तुमसे कोई परदा न  रक्खूँगा। लो, सुनो—

असदखाँ, पाँच साल पहले मैं इतना वृद्ध न था, जैसा कि अब दिखाई पड़ता हूँ। इस समय मेरी आयु चालीस वर्ष से अधिक नहीं है। एक भी बाल सफेद न हुआ था और उस समय मुझमें इतना बल था कि दो जवानों को मैं लड़ा देता। जर्मनों से मैंने मुठभेड़ की है और न मालूम कितनों को यमलोक का रास्ता बता दिया। जर्मन-युद्व के बाद मुझे यहाँ सीमा प्रान्त पर काली पलटन का मेजर बनाकर भेजा गया। जब पहले-पहल मैं यहाँ आया तो यहाँ पर कठिनाइयाँ सामने आई; लेकिन मैंने उनकी जरा भी परवाह न की और धीरे-धीरे उन सब पर विजय पाई। सबसे पहले यहाँ आकर मैंने पश्तो सीखना शुरू किया। पश्तो के बाद और भी जबानें सीखीं, यहाँ तक कि मैं उनको बड़ी आसानी और मुहाविरों के साथ बोलने लगा, फिर इसके बाद कई आदमियों की टोलियाँ बनाकर देश का अन्तर्भाग भी छान डाला। इस पड़ताल में कई बार मैं मरते-मरते बचा, किन्तु सब कठिनाइयाँ झेलते हुए मैं यहाँ पर सकुशल रहने लगा। उस जमाने में मेरे हाथ से ऐसे-ऐसे काम हो गये, जिनसे सरकार में मेरी बड़ी नामवरी और प्रतिष्ठा भी हो गयी। एक बार कर्नल हेमिलटन की मेम साहब को मैं अकेले छुड़ा लाया था, और कितने ही देशी आदमियों और औरतों के प्राण मैंने बचाये हैं। यहाँ पर आने के तीन साल बाद से मेरी कहानी आरम्भ होती है।

एक रात को मैं अपने ‘कैम्प’ में लेटा हुआ था। अफ्रीदियों से लड़ाई हो रही थी। दिन के थके-माँदे सैनिक गाफिल पड़े हुए थे। कैम्प में सन्नाटा था। लेटे-लेटे मुझे नींद आ गयी। जब मेरी नींद खुली, तो देखा कि छाती पर एक अफ्रीदी–जिसकी आयु मेरी आयु से लगभग दूनी होगी—सवार है और मेरी छाती में छुरा घुसेड़ने ही वाला है। मैं पूरी तरह से उसके अधीन था, कोई भी बचने का उपाय न था, किन्तु उस समय मैंने बड़े ही धैर्य से काम लिया और पश्तो भाषा में कहा—मुझे मारो नहीं, मैं सरकारी फौज में अफसर हूँ। मुझे पकड़ ले चलो, सरकार तुमको रुपया देकर मुझे छुड़ायेगी।

ईश्वर की कृपा से मेरी बात उसके मन में बैठ गयी। कमर से रस्सी निकाल कर मेरे हाथ-पैर बाँधे और फिर कन्धे पर बोझ की तरह लादकर खेमे से बाहर आया। बाहर मार-काट का बाजार गर्म था। उसने एक विचित्र प्रकार से चिल्लाकर कुछ कहा और मुझे कंधे पर लादे वह जंगल की ओर भागा। यह मैं कह सकता हूँ कि उसको मेरा बोझ कुछ भी न मालूम होता था, और बड़ी तेजी से भागा जा रहा था। उसके पीछे-पीछे कई आदमी, जो उसी के गिरोह के थे, लूट का माल लिए हुए भागे चले आ रहे थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book