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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव

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यहाँ श्रेणी में कुछ धनी परिवारों के लड़के भी थे। उनमें एक विष्णु-स्वरूप था। इरीन ने अपना मोह-जाल लड़कों पर डालना आरम्भ कर दिया। लड़के भी उसके चारों और भँवरों की भाँति मँडराने लगे। स्मिथ इरीन की भाँति न तो सुन्दर थी, न ही चुलबुली। परन्तु दोनों ही एक समुदाय की लड़कियाँ थीं और सिगरेट, मद्य आदि का सेवन दोनों ही करती थीं। दोनों लड़कों की संगति के लिए लालायित रहती थीं और दोनों लड़कों से ‘लव स्टोरीज’ कहने तथा सुनने में रस अनुभव करती थीं।

लड़के उनको भेंट देते थे और वे भी साधारण रूप में उनको कृतज्ञता प्रकट करती रहती थीं। श्रेणी के लड़कों में विष्णुस्वरूप इरीन से बहुत हिल-मिल गया था और प्रायः सायंकाल दोनों किसी रेस्टोराँ में चाय लेते थे। कभी एक-आध पैग भी ले लिया करते थे।

इस पूर्ण श्रेणी में रजनी और इन्द्रनारायण ऐसे थे, जैसे सितार में बेसुरे तार। इरीन तो इन्द्रनारायण को मूर्ख समझती थी और रजनी को सरलचित्त।

विवाह की दावत के कुछ दिन पीछे दोनों में विष्णु और इन्द्र का मुकाबला हो गया। इरीन ने कहा, ‘‘आज सायं विष्णु मुझको चाय दे रहा है।’’

‘‘क्या बात है?’’

‘‘उसको महीने में एक सौ रुपया जेब-खर्च, किताबों तथा कपड़ों के लिए मिलता है। किताबें तो वह वर्ष में एक बार ही खरीदता है। कपड़े पर वह तीस रुपये महीने से अधिक खर्च नहीं करता। आठ-दस रुपये कापी, स्याही आदि पर। शेष रुपयों की हम दावतें करते फिरते हैं। इस महीने में आज पहला दिन है।’’

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