उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘तुम उससे प्रेम करती हो क्या?’’
‘‘वह बहुत ही ‘लवली बॉय’ है।
‘‘मैं तुमको बधाई देती हूँ।’’
‘‘तुम हमारी दावत में सम्मिलित हो जाओ तो विष्णु बहुत प्रसन्न होगा।’’
‘‘नहीं, मैं सम्मिलित नहीं हूँगी।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘इसलिए कि मुझको विष्णु एक ‘मोस्ट अगली’ (अति कुरूप) लड़का प्रतीत होता है।’’
‘‘रजनी! चश्मा लगवाओ। तुममें दृष्टि-दोष आ गया प्रतीत होता है।’’
‘‘मैं समझती हूँ कि शराब पीने से तुम्हारी दृष्टि दुर्बल पड़ गई है। इसी से तुम सुन्दर को असुन्दर और कुरूप को रूपवान देखने लगी हो।’’
‘‘तो तुम्हारी दृष्टि में अपनी श्रेणी में कोई रूपवान लड़का है क्या?’’
‘‘हाँ, एक है। वह है इन्द्र।’’
‘‘ओह! ‘देट क्लमजी फैलो’ (वह भद्दा जानवर)।’’
‘‘अपनी-अपनी बुद्धि है।’’
‘‘परन्तु वह तो विवाहित है।’’
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