उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
शिवदत्त मानता नहीं था। उसकी पत्नी ‘सोशल लाइफ’ महँगी होती जाती थी। वह लखनऊ क्लब का सदस्य हो चुका था। वहाँ जुआँ खेलना, सिगरेट पीना, मद्यपान करना और कुछ सोसायटी गर्ल्ज से मेल-जोल रखना इनसे उसकी आर्थिक स्थिति पर गम्भीर प्रभाव पड़ रहा था। इस कारण वह एक प्रकार से विष्णु को भी पढ़ाई छोड़ देने में उद्यत देख मन में प्रसन्नता अनुभव कर रहा था।
इस विषय पर चर्चा खुलकर तब हुई, जब पंडित रामाधार और उसकी पत्नी सौभाग्यवती लखनऊ आये। रामाधार तो इन्द्र की पढ़ाई के विषय में विचार करने आया था और सौभाग्यवती राधा के लिए लड़का देखने।
जब चर्चा चली तो अगली-पिछली बातें खुल गईं। शिवदत्त ने चर्चा के आरम्भ में ही कह दिया, ‘‘देखो रामाधार! यदि कुछ दम है तो लड़के को मेडिकल कॉलेज में भरती करवा दो और यदि जेब में पैसे नहीं हैं तो इसका स्वप्न भी न लो। बीस-पच्चीस छात्रवृत्ति से पूर्ण खर्चा चला नहीं सकोगे।’’
‘‘कितना खर्चा करना पड़ेगा?’’
‘‘बताओ इन्द्र! क्या समझते हो, कितने में निर्वाह कर सकोगे?’’
इन्द्र ने अपना अनुमान बता दिया, ‘‘सब प्रकार की फीस मिलाकर साढ़े पाँच सौ रुपये प्रति छः मास में। कुछ पुस्तकों आदि के लिए चार सौ रुपया वर्ष-भर का। वस्त्र, भोजन और बोर्डिंग हाउस का खर्च सौ रुपये मासिक।’’
‘‘अर्थात्,’’ रामाधार ने कह दिया, ‘‘ढाई हजार रुपये प्रतिवर्ष। इतना मैं प्रबन्ध नहीं कर सकूँगा।’’
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