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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘तो मैं कल से कहीं नौकरी ढूँढ़ने में लग जाऊँगा।’’

‘‘नहीं।’’ इन्द्र की नानी ने कहा, ‘‘बोर्डिंग हाउस में रहने की आवश्यकता नहीं। इन्द्र हमारे घर में ही रहेगा। भोजन तथा कपड़े का प्रबन्ध भी हो जायेगा। शेष फीस का प्रबन्ध रामाधार को करना होगा।’’

‘‘अर्थात् एक सौ मासिक।’’ सौभाग्यवती ने कह दिया, ‘‘वह मैं कर दूँगी। मैं अपने भूषण साथ लायी हूँ। उनको बेचकर दो-तीन वर्ष की फीस का प्रबन्ध तो हो ही जायेगा। शेष एक-दो वर्ष के लिए हम उधार ले लेंगे।’’

‘‘परन्तु इन्द्र के यहाँ रहने से विष्णु की पढ़ाई में बाधा पड़ेगी।’’ शिवदत्त ने कह दिया।

‘‘क्या बाधा पड़ेगी?’’ शिवदत्त की पत्नी ने पूछा।

‘‘विष्णु से पूछ लो।’’

‘‘क्यों विष्णु! क्या कहते हो?’’

‘‘माँ! एक ही तो कमरा है, जिसमें हम दोनों रहेंगे। इसकी पढ़ाई और मेरी पढ़ाई में अन्तर है। हम दोनों एक ही कमरे में पढ़ नहीं सकेंगे और रह नहीं सकेंगे।’’

‘‘तो इन्द्र मेरे कमरे में पढ़े और सोयेगा।’’

‘‘और तुम?’’

‘‘मैं पाँच वर्ष तक यहाँ बरामदे में सोने का प्रबन्ध कर लूँगी।’’

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