उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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महेन्द्र आया और उससे कुछ देर तक बातचीत करने के पश्चात् रामाधार ज्ञानेन्द्र से बोला, ‘‘हमने दो बजे की गाड़ी पकड़नी है। अतः हमको छुट्टी दीजिये। शेष बातचीत साधना करेगी।’’
इतना कह वह उठ खड़े हुए। ज्ञानेन्द्र ने अपने छोटे लड़के को कहा, ‘‘महेन्द्र! इनको छोड़ आओ।’’
महेन्द्र उनके साथ चल पड़ा। वे नमस्कार कर घर से विदा हुए तो मार्ग में रामाधार ने महेन्द्र से उसकी योजना पूछ ली। रामाधार ने पूछा, ‘‘महेन्द्रजी! आपके पिताजी कह रहे थे कि आप किसी योजनाधीन होकर नौकरी कर रहे हैं। नौकरी करना आपका जीवन-कार्य नहीं?’’
‘‘जी हाँ। क्या आप नौकरी करना किसी प्रकार से श्रेष्ठ कार्य समझते हैं?’’
‘‘बेटा! मैं एक देहात का रहने वाला हूँ। इतनी लम्बी-चौड़ी बातों को नहीं जान सकता। मेरा तो यह कहना है कि शास्त्र में ब्राह्मण-जन्म एक बहुत सौभाग्य की बात है। ब्राह्मण का कार्य विद्या पढ़ना और पढ़ाना है। इस कार्य के करते हुए यदि कहीं नौकरी करनी पड़े तो हानि नहीं मानता।’’
‘‘तो स्कूलों की मास्टरी भी ब्राह्मण का कार्य हो गया क्या?’’
‘‘नहीं; वह इस कारण कि स्कूलों में विद्या नहीं अविद्या पढ़ाई जाती है। मास्टर बेचारे और पढ़ा भी क्या सकते हैं?’’
‘‘आप विद्या किसको मानते हैं?’’
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