लोगों की राय

उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘रजनी को साधना की संयम की बात से आश्चर्य हुआ था। परन्तु वह इस बात से प्रसन्न थी कि साधना का पति उसके परिवार का कार्य चलाने के लिए धन देता है।

रजनी ने बात को पुनः राधा की ओर घुमाकर कहा, ‘‘मैंने राधा को उपदेश तो यही दिया था कि अपने में अनुकूल शक्ति पैदा करे परन्तु बात भंग तो शिवकुमार की लोभी प्रवृत्ति देखकर हुई है।’’

‘‘रामाधार जीजाजी ने क्या कहा था?’’

‘‘उन्होंने दीर्घ निःश्वास छोड़कर कहा था कि राधा का अनुमान कि ये लोग वैश्य-वृत्ति के हैं, ठीक ही निकला है। अब उसके लिए कोई और वर ढूँढ़ेंगे।’’

‘‘मेरा मन तो कहता है कि राधा का विवाह यहीं होगा और राधा सुखी रहेगी।’’ साधना ने कह दिया।

‘‘भगवान् जाने क्या होगा? अपनी समझ में तो यह आता है कि माता-पिता चाहे कैसे हों, लड़का कुछ मूर्ख अवश्य है। अभी उसकी मूर्खता लोभमयी हो रही है तो आगे चलकर कौन जाने क्या रूप स्वीकार करेगी।’’

साधना अपने घर वापस गयी तो वहाँ शर्मिष्ठादेवी पूर्ण वृत्तान्त जानने के लिए बैठी हुई थी। साधना ने सब बात बता दी। शर्मिष्ठा ने पूछा, ‘‘तो अब तुम हमारी सहायता नहीं करोगी क्या?’’

‘‘मौसी! मैं तो अब भी चाहती हूँ कि शिवकुमार से राधा के विवाह हो जाये, परन्तु अब मैं इसमें कुछ कर नहीं सकती। मुझको तो अभी भी विस्मय हो रहा है कि शिवकुमार, जिसे मैं बहुत ही अच्छा लड़का समझती थी, दहेज कैसे माँग बैठा? उसकी बुद्धि क्यों भ्रष्ट हो गयी थी?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book