उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘साधना! बात इस प्रकार हुई थी कि कानपुर के एक ठेकेदार, जो जाति से ब्राह्मण परन्तु कर्म के चर्मकार है, शिवकुमार से मिले थे और उसको अपनी लड़की दिखा देने की बात कर गए थे। शिवकुमार ने तुमसे दहेज माँगते समय इस बात की ओर संकेत नहीं किया था। इस कारण उसके पिता ने तुमको बता दिया था।
‘‘तुम्हारे चले जाने के पश्चात् पिता-पुत्र में भारी झगड़ा हुआ और इस झगड़े का परिणाम यह हुआ कि मुझको तुम्हारे पास पुनः आना पड़ा है।’’
‘‘परन्तु मौसी!’’ साधना का कहना था, ‘‘कब तक पिता अपने पुत्र को समझाता रहेगा? मेरा कहा मानो, शिवकुमार को कानपुर जाकर अपने विवाह का प्रबन्ध कर लेने दो। यह जीवन-भर का सम्बन्ध इस प्रकार की लीपा-पोती से करना ठीक न होगा।’’
शर्मिष्ठा वहाँ से चली गई।
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