उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
रामाधार कुछ कहने में परेशानी अनुभव कर रहा था। उसके समीप शिवकुमार बैठा था और वह जान नहीं पा रहा था कि वह किस प्रकार अपने मन की बात रामजियावन को बताये। कुछ देर तक उसने विचारकर कहा, ‘‘देखो लाला! मैंने राधा की जन्म-कुण्डली और लखनऊ के एक लड़के के टेवा से मिलान किया था। दोनों में अद्भुत सामंजस्य दिखायी दिया। विवाह की बातचीत होने लगी तो लड़के ने भारी दहेज माँग लिया। इससे बात टूट गयी। इस दहेज की बात सुन तो लड़की ने विवाह करने से ही इन्कार कर दिया है। वह कहती है कि मानव-समाज का इतना पतन देखकर तो इस समाज में वृद्धि करना भी पाप हो गया है।
‘‘मैं मन में विचार कर रहा हूँ कि जो कुछ पत्रे में लिखा होता है, वह कभी नहीं भी होता। इसी कारण यह कह रहा था कि इस पत्री के मिल जाने के पश्चात् भी अपनी बुद्धि से विचार कर लेना उचित है। कौन जाने इस कलियुग में क्या न हो जाये।’’
‘‘यह तो करेंगे ही। पण्डितजी, हमारी बिरादरी में लेन-देन खूब चलता है। वास्तव में हम को अपने प्रत्येक कार्य में लाभ-हानि की बात देखते ही रहते हैं। यह तो हमारी प्रवृत्ति-सी हो चली है।’’ यह कहकर रामजियावन अपने पत्र आदि समेटने लगा।’’
रामाधार ने अब शिवकुमार की ओर देखकर पूछ लिया, ‘‘तो हाँ शिवकुमार! कैसे आना हुआ?’’
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