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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘शिवकुमार तो बाहर चौपाल पर आसन लगाये है। मैंने उसको देखा नहीं। वहाँ अपने गाँव और आसपास के गाँव के लोग उसको देखने के लिए आ रहे हैं। लोग उसको मजनू की उपाधि देने लगे हैं। कल गाँव की चौकी का थानेदार भी आया था, वह पूछ-ताछ कर चला गया है। उसने गाँव वालों को यह कहा प्रतीत होता है कि यह चौपाल रामाधार की है। यदि वह थाने में रिपोर्ट लिखाये कि इसको हटा दिया जाए तो वह उस पर मुकदमा बना, उसको पकड़ सकता है अथवा यदि यह सिद्ध हो जाए कि यह भूखा रहकर प्राणान्त करने वाला है, तो वह इसको आत्महत्या करने के आरोप में पकड़ सकता है। इस समय इन दोनों बातों में से कोई बात नहीं। इसलिए वह कुछ नहीं कर सकता। सुना है लड़का दुबला-पतला होता जा रहा है।’’

‘‘इधर घर में राधा दुर्बल होती जा रही है। मुझको डर है कि शौच आदि न आने से वह किसी असाध्य रोग से ग्रस्त न हो जाए।’’

रजनी ने यह पत्र पढ़कर अपने पति को सुनाया तो पहले तो वह हँसा और फिर कुछ गम्भीर होकर कहने लगा, ‘‘तुम्हें शीघ्र दुरैया जाना चाहिए।

‘‘इस तपस्या का परिणाम शुभ अथवा अशुभ दोनों हो सकते हैं। राधा विवाह स्वीकार भी कर सकती है और यह भी हो सकता है कि उसके अन्तःस्थल पर यह प्रभाव भी उत्पन्न हो जाए कि उसको इन कृत्रिम उपायों से विवश कर विवाह किया गया है।

‘‘इस कारण बहुत ही सावधानी से इस कार्य में हस्तक्षेप करना चाहिए।’’

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