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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘देखो रजनी! विवाह तो यह होगा। तुमने अब जो कुछ करना है वह दोनों के मन से कलुषता धोकर उनमें मधुरता लाने का प्रयत्न मात्र होना चाहिए।’’

रजनी दुरैया जा पहुँची। उसे इस समय आई देख रामाधार की जान में जान आई। इस बार वह आई तो अपने साथ दवाइयों की पेटी लेकर आई।

घर के बाहर चौपाल पर शिवकुमार आसन जमाए, आँखें मूँदे जाप कर रहा था। उसके सामने ज्ञानेन्द्रदत्त और शर्मिष्ठादेवी शोकग्रस्त बैठे थे।

रजनी ने यह भी देखा कि तीस-पैंतीस देहाती चौपाल के नीचे खड़े हुए बहुत ही श्रद्धा से शिवकुमार को देख रहे थे।
उस दिन लाला रामजियावन भी आया हुआ था और वह बड़े लोगों को वहाँ की वास्तविक परिस्थिति समझा रहा था। वह बता रहा था, ‘‘इस लड़के के पण्डितजी की लड़की का विवाह के लिए निश्चय हो चुका था। लड़के ने दहेज में पाँच हजार रुपया माँगा तो लड़की ने समझा कि यह इसका कमीनापन है। लड़की ने विवाह से इन्कार कर दिया। अब यह लड़का अपने पाप का प्रायश्चित्त कर रहा है। जब इसका प्रायश्चित्त पूर्ण होगा तो विवाह हो जाएगा।’’

रजनी इक्के से उतर हाथ में बैग लटकाए भीड़ में खड़ी थी। उसने भी रामजियावन की बात सुनी और समझी। वह मन में विचार करने लगी थी, ‘यह प्रायश्चित्त कब पूर्ण होगा?’

इस विचार में वह घर के भीतर चली गई। राधा को आसन जमाये आठ दिन हो गए थे। वह बहुत ही दुर्बल हो गई थी। शारदा ने बताया, ‘‘कई दिनों पश्चात् आज शौचालय गई थी, परन्तु वहीं अचेत होकर गिर पड़ी थी। जब वह बहुत देर तक बाहर नहीं आई तो मैं भीतर गई और मैंने उसको दीवार के साथ ढासना लगाए हुए अचेत पाया। मैं उसको उठाकर बाहर लाई और बहुत यत्न से सचेत की गई।’’

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