उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
सौभाग्यवती राधा के पास बैठी थी। राधा धीरे-धीरे पाठ कर रही थी। अब ऊँचे बोलने की उसमें शक्ति ही न रही थी।
रजनी को आयी देख उसने मुस्करा दिया।
रजनी उसके पास बैठ गई। जब गीता का एक एक पाठ समाप्त हुआ तो उसने गीता पर हाथ रख लिया और राधा को आराम करने के लिए कह दिया।
‘‘परन्तु मैं थकी नहीं।’’
‘‘वह तो तुम्हारे मुख को देखने से पता चल रहा है। यदि इसी प्रकार दो-तीन दिन और चलता रहा तो आत्महत्या का पाप तुम पर लग जाएगा।’’
रजनी को आयी देख घर के सब लोग समीप से उठ गए थे। रजनी राधा से बड़ी थी, अधिक पढ़ी-लिखी थी। फिर डॉक्टर भी थी। इससे उसकी उपस्थिति में वे किसी प्रकार के अनिष्ठ की आशंका नहीं कर सकते थे।
‘‘परन्तु मैं आत्महत्या नहीं कर रही।’’
‘‘तो क्या कर रही हो? पाठ का वास्तविक लाभ तो इसके अर्थ समझकर इस पर आचरण करने से है, न कि तोते की भाँति बार-बार बिना समझे राम-राम करने से।’’
‘‘मैं यह आत्म-शुद्धि के लिए कर रही हूँ।’’
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