उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
पाँचवाँ परिच्छेद
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दो वर्ष की पढ़ाई के पश्चात् इन्द्रनारायण बियाना से डॉक्टर की डिग्री लेकर तथा स्वर्ण-पदक प्राप्त कर लौटा। उसके भारत में आते ही यू० पी० सरकार ने उसको प्रान्त के ‘डायरेक्टर ऑफ़ हैल्थ’ के स्थान पर लगा दिया। दो हजार रुपये मासिक वेतन था। इस प्रकार काम मिलने पर वह अति प्रसन्न था।
जब वह लखनऊ स्टेशन पर पहुँचा तो रजनी, प्रोफ़ेसर आनन्द, रामाधार और पंडित शिवदत्त के परिवार के सब सदस्य प्लेटफार्म पर उसके स्वागत के लिए पहुँचे हुए थे।
इन्द्रनारायण को नियुक्ति का पत्र बियाना में ही मिल गया था। साथ ही उसने अपना स्वीकृति-पत्र वहाँ से ही भेज दिया था। इस कारण उसको बम्बई पहुँचते ही आज्ञा मिल गयी कि अपने पद के स्थान के लिए वह चीफ़ सेक्रेटरी, यू० पी० सरकार से मिल ले।
अतः उसने गाँव जाने से पूर्व दो दिन लखनऊ में ही रहने का कार्यक्रम बना लिया। वह सेक्रेटरी से मिलकर ही गाँव में जाना चाहता था।
उसने उतरते ही रजनी की माता लक्ष्मीदेवी से कह दिया, ‘‘माताजी! अभी आपकी कोठी में ठहरने का विचार कर रहा हूँ।’’
‘‘तो और कहीं जाने की बात भी है?’’
‘‘हाँ।’’ शिवदत्त ने, जो समीप खड़ा इन्द्र की बात सुन रहा था, कह दिया, ‘‘मैं इसको अपने घर ले जाने वाला हूँ।’’
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