लोगों की राय

उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘मनुष्य ने वहाँ इतनी बड़ी-बड़ी मशीनें बना ली हैं कि वह स्वयं उनके सामने बहुत ही लघु लगने लगा है। मैं जर्मनी घूमने के लिए गया था। वहाँ का वैभव देखकर चकाचौंध रह गया था। दस-बारह मंजिल के मकान तो साधारण बात है। कोई-कोई तो बीस मंजिल तक के हैं। लोग वहाँ सड़कों पर चलते-फिरते ऐसे प्रतीत होते हैं कि कहीं आगे आग बुझाने के लिए जा रहे हों। मोटरें, ट्रामें, बसें, सब खूब खचाखच भरी रहती हैं और भीतर जगह न मिलने से लोग बाहर लटके जाते हैं। एक्सीडेंट होने से मर भी जाते हैं, परन्तु इस पर भी ऐसे भाग-दौड़ में लगे हैं, जैसे जीवन-मरण की समस्या सुलझा रहे हों।

‘‘माल भी वहाँ इतना बढ़िया और इतना सस्ता बिकता है कि विस्मय होता है। देखो रमा! तुम्हारी पत्नी के लिए मैं एक थान कपड़े का लाया हूँ। देखोगे तो चकित रह जाओगे’’

‘‘कब दिखाओगे?’’

‘‘सामान पीछे पार्सल ट्रेन से आ रहा है। कल या परसों तक आ जाएगा।’’

‘‘तो लोग वहाँ बहुत सुखी हैं क्या?’’

‘‘इन्द्र इस प्रश्न के पूछे जाने पर चुप कर गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या उत्तर दे। कुछ देर चुप रहने के पश्चात् वह बोला, ‘‘रमा! इस प्रश्न का उत्तर दो दृष्टिकोणों से दिया जा सकता है। एक तो वहाँ पर सुख-सुविधाओं का सामान देखकर विचार आता है कि वहाँ के लोग अवश्य सुखी होंगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book