उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘पति-पत्नी एक फ्लैट में रहते हैं। दोनों नौकरी करते हैं। इस कारण दोनों प्रातः उठ, शौचादि से निवृत्त हो, मुख-हाथ धो प्रातः का अल्पाहार घर पर करते हैं। अल्पाहार में रोटी, मक्खन, अंडे, दूध अथवा चाय होती है। इसके पश्चात् दोनों अपने-अपने काम पर चले जाते हैं। मध्याह्न के समय यदि दोनों के काम करने के स्थान समीप-समीप होते हैं तो इकट्ठे भोजन करने के लिए किसी होटल में चले जाते हैं, अन्यथा पृथक्-पृथक् भोजन करते हैं। सायं को चाय अपने-अपने दफ्तर में ही लेते हैं। पाँच बजे अपने-अपने काम में छुट्टी पाकर अपने घर पहुँचते हैं। कपड़े बदल घूमने के लिए निकल जाते हैं। किसी बाग-बगीचे में, अथवा नदी के किनारे हजारों की संख्या में पति-पत्नी बाँहों में बाँहें डाले सैर करते देखे जा सकते हैं।
‘‘वे परस्पर बातें करते हैं। खेल-तमाशे देखने जाते हैं। क्लबों में जाते हैं। रात को किसी होटल में खाना खाते हैं और फिर घर लौट आते हैं। घर आकर सो जाते हैं। अगले दिन पुनः यही कार्यक्रम चलता है।’’
‘‘इस प्रकार सप्ताह में साढ़े पाँच दिन यही कार्यक्रम चलता रहता है। शनिवार आधे दिन की छुट्टी होती है। अतः लंच के पश्चात् दोनों घर पहुँच जाते हैं। शनिवार को सब लोग अगले सप्ताह की आवश्यकताओं की खरीद के लिए बाजार निकल जाते हैं।
‘‘प्रति सप्ताह शनिवार को वेतन मिलता है और लोग सप्ताह-भर के लिए सामान इत्यादि उसी दिन खरीद लेते हैं। होटल आदि का बिल भी शनिवार को दे दिया जाता है।’’
‘‘महीने में एक बार लाखों की संख्या में लोग किसी दूर स्थान पर भ्रमण के लिए निकल जाते हैं। किसी नदीं, झील अथवा समुद्र के किनारे पर। वहाँ लोग खाते-पीते, नाचते-गाते और थिएटर-सिनेमा देखते हैं।’’
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