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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘इन सब बातों को देखकर यही प्रतीत होता है कि लोग वहाँ बहुत प्रसन्न हैं। पर उनसे पूछो तो उनमें कोई ही अपने को सुखी कहता है।’’

‘‘प्रथम बात तो यह है कि युवा पुरुष-स्त्रियों में पचास प्रतिशत ही विवाहित होते हैं। शेष या तो अपने विवाह का साथी अपने योग्य अभी पाए नहीं होते, अथवा पाना ही नहीं चाहते। बहुत-से इनमें से विवाह हो जाने के बाद तलाक दिए होते हैं। ऐसे पचास प्रतिशत में बहुसंख्या अपने को दुखी प्रकट करती है। ऐसी स्त्रियाँ कम नहीं जो तलाक के पश्चात् दोबारा विवाह नहीं कर सकतीं और अपने त्यक्त पतियों की स्मृति में आँसू बहाया करती हैं।’’

‘‘पचास प्रतिशत युवा-दम्पतियों में शनिवार के दिन तो प्रायः सब के सब अति प्रसन्न होते हैं। उनकी जेबों में वेतन होता है। वे खाते-पीते हैं और आनन्द भोग करते हैं। रविवार को प्रसन्नता की मात्रा कम हो जाती है और सोमवार तक उनकी सामान्य स्थिति रहती है। मंगल, बुद्ध, शुक्र और आधा दिन शनिवार उनका मुसीबत में गुजरता है। शनिवार को वेतन मिलने के पश्चात् प्रसन्नता और दुःख का वही चक्कर आरम्भ हो जाता है।

‘‘जिनके घर में बच्चे हो जाते हैं, वे तो अपने-आपको अत्यन्त दुखी अनुभव करते हैं। प्रायः पत्नी कार्य नहीं कर सकती और पति को अकेले खर्चा सहना पड़ता है।’’

‘‘ऐसी अवस्था में कभी-कभी स्त्रियाँ अपना सतीत्व तक बेचकर अपना निर्वाह करने पर तैयार हो जाती हैं।’’

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