उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘इस प्रकार की अवस्था देखकर तो यही कहा जाएगा कि वहाँ का समाज अति दुखी है।’’
‘‘तो हमारे देश की भाँति वहाँ संयुक्त परिवार नहीं है क्या?’’
‘‘देहातों में कुछ सीमा तक यह दिखाई देता है; परन्तु नगरों में, जहाँ प्रायः लोग नौकरी करते हैं, संयुक्त परिवार का चिह्न भी नहीं मिलेगा।’’
‘‘हम समझते हैं कि हम सुखी हैं।’’
‘‘हाँ, और कहने को वे कहेंगे कि वे सुखी हैं।’’
‘‘और तुम क्या समझते हो, दादा?’’
‘‘मेरा कहना है कि वहाँ सुख-सामग्री बहुत है।’’
‘‘प्रश्न तो यह है कि उस सुख-सामग्री के उत्पादन के लिए आत्मा को तो गिरवी रखना नहीं पड़ रहा? देखो दादा! मैंने एक उपन्यास ‘फास्ट’ नामक पढ़ा है। उसमें एक युवक ने एक राज्य परिवार का सुख प्राप्त करने के लिए अपने को शैतान के पास बेच दिया था। दोनों में समझौता हो गया। युवक को राजकुमारी मिली, राज्य मिला, महल मिले, नौकर-चाकर मिले। इस प्रकार के जितने भी सुख-साधन होते हैं, उसे प्राप्त हो गए। परन्तु वह उस सबको पाकर भी सुखी न हो सका। वह घबराकर वहाँ से भागा और एक पादरी की सहायता से भगवान् की शरण में आकर शान्ति पा सका।’’
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