उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
शारदा ने उत्तर नहीं दिया। रजनी ने चुप देख कह दिया, ‘‘पिछली बार जब मैं काका के घर गई थी तो यह और रमाकान्त दोनों अंग्रेजी पढ़ रहे थे। गाँव के स्कूल का एक अध्यापक इनको पढ़ाने के लिए आता था। उस समय यह ‘गुलिवर्ज़ ट्रैवल’ पढ़ रही थी।’’
‘‘यह तो बहुत ही अच्छा समाचार है। परन्तु इसने तो बताया ही नहीं।’’
‘‘मुझको तो गाँव में एक वर्ष से ऊपर हो गया है। शारदा! बताओ, अब क्या पढ़ती हो?’’
शारदा ने अभी भी कुछ उत्तर नहीं दिया। वह चुपचाप बैठी रही। इस पर इन्द्रनारायण ने कहा, ‘‘अंग्रेजी पढ़ने मात्र से काम नहीं चलेगा। इसको कुछ सीखना भी पड़ेगा। मैं समझता हूँ कि इसको दो-चार बात तो रजनी-बहन को बतानी ही पड़ेंगी।’’
‘‘बता दूँगी। तुम चिन्ता न करो। यह तुम्हारे घर की शोभा बनेगी। वहाँ सब आने-जाने वाले इसके व्यवहार की प्रशंसा करेंगे।’’
वास्तविक परिवर्तन तो इन्द्रनारायण के गाँव से लौटने पर आरम्भ हुआ। उसे रायसाहब का तार पहुँचा तो वह सपत्नीक लखनऊ को चल पड़ा। शारदा तो गाँव में पहुँचते ही अपने वस्त्र, पुस्तकें आदि बाँधकर तैयार हो गई थी। बच्चे भी लखनऊ चलने की प्रसन्नता में उछल-कूद मचा रहे थे।
लखनऊ में पहले तो रायसाहब के घर में ठहरे। उसी दिन इन्द्रनारायण पुनः चीफ़ सेक्रेटरी से मिला। पहला डायरेक्टर ऑफ़ हैल्थ नौकरी से ‘रिटायर’ हो गया था और इंग्लैण्ड चला गया था। वह सरकारी बंगला, जिसमें वह रहता था, अब खाली पड़ा था। वही बंगला इन्द्रनारायण को मिल गया।
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