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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


लखनऊ में पहुँचते ही सबसे पहला कार्य जो इन्द्रनारायण ने किया, वह रजनी के साथ शारदा को कपड़े खरीदने के लिए भेजना था। शारदा गई तो दोनों लगभग पाँच सौ रुपये का सामान खरीद लायीं। इसके बाद स्वर्ण के आभूषण, जो उसको माता-पिता ने दिए थे और जो सौभाग्यवती ने पहनाये थे, बेचकर उनके स्थान पर नये-नये डिजाइन और फैशन के भूषण खरीद लिए गए। दो सौ रुपये के लगभग इसमें बनवाई देनी पड़ी। हैयर ड्रेसर के पास शारदा को ले जाया गया। वहाँ उसने अपने बालों को बिना कटवाये नये फैशन से बाँधना सँवारना सीख लिया। केवल बाल बाँधना बताने के ड्रेसर ने बीस रुपये ले लिए। उनका कहना था कि अभी इसको प्रति सप्ताह आकर बँधवाना सीखना चाहिए। सौ रुपये की तीन जोड़ी सैंडल खरीदे गए। इस प्रकार आठ-नौ सौ के लगभग खर्च कर शारदा घर पहुँची तो उसने अपने पति से कह दिया–‘‘लीजिए आपकी बात मान ली है। परन्तु मेरा मन कहता है कि यह सब व्यर्थ है। दो सेर रुई में पौने दो सेर सूत बन जाता था। उस सूत से सोलह गज खद्दर तैयार हो जाता है, जिसमें एक दर्जन कुर्तियाँ बन जाती हैं। इस प्रकार तीन रुपये की लागत में एक दर्जन कुर्तियाँ बन जाती हैं। अब मैं कुर्तियों के लिए रेशम लाई हूँ। खद्दर की कुर्तियाँ तो घर में माताजी सी लेती हैं। अब इनको किसी दरजी से सिलवाना होगा। फिर नित्य नहीं तो कभी-कभी ही सही, इनको ड्राई क्लीन करवाना होगा। कितना व्यर्थ का खर्चा है!’’

‘‘देखो शारदा रानी! जब तुम ये नये कपड़े पहनकर मेरे साथ राय साहब की चाय-पार्टी में जाओगी तो सब दुनिया तुम्हें देखने के लिए टूट पड़ेगी।’’

‘‘मुझको अथवा मेरे वस्त्राभूषणों को?’’

‘‘तुमको। हीरा जब अँगूठी में लगा तो कदर पाता है। गुदड़ी में बँधा हुआ शोभा नहीं पाता।’’

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