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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


शारदा चुप कर रही। उसी सायंकाल इन्द्रनारायण अपनी पत्नी को जम्पर के कपड़ों के साथ रैंकन टेलर्स तथा ड्रेपर्स की दुकान पर ले गया। वहाँ एक अंग्रेज स्त्री स्त्रियों के नाप आदि के लिए रखी हुई थी। इन्द्रनारायण ने ‘कैटलाग’ देखकर उसे डिजाइन बताया और जम्पर बनने के लिए दो दिए गए। शारदा ने कहा भी कि ठीक नहीं, परन्तु इन्द्र ने उसके कहने की ओर ध्यान नहीं दिया।

मार्ग में लौटते हुए उसने कहा, ‘‘रजनी बहन ने तुम्हारे बाल बँधवा दिए हैं और इससे तुम बहुत ही सुन्दर लगने लगी हो। इसके साथ यह जम्पर और साड़ी पहनोगी तो तुम्हारा पति तुम पर गर्व से फूला न समायेगा।’’

शारदा की हँसी निकल गई। इन्द्रनारायण ने प्रश्नभरी दृष्टि से उसकी ओर देखा तो वह बोली, ‘‘आपके गर्व करने पर मुझको भी गर्व होगा। इससे मुझको डर लग रहा है, क्योंकि गर्व का सिर नीचा होता है।’’

‘‘क्या पुराने जमाने की बातें करती हो? अपनी पदनी के अनुसार गर्व करना उचित ही होता है। अथवा संसार यह समझने लगता है कि यह व्यक्ति अफ़सर बनने के योग्य नहीं। इस प्रकार एक सुन्दर स्त्री को अपने सौन्दर्य पर उचित गर्व करना ही चाहिए, अन्यथा लोग उसको मूर्ख मानने लगते हैं।’’

‘‘आपकी बात ठीक है। आपने नौकरी करनी है, परन्तु मुझको, जिसने किसी की नौकरी नहीं करनी, किसी के कुछ भी कहने की चिन्ता नहीं होनी चाहिए। कोई मुझको मूर्ख कहेगा तो आपका ही अहित करेगा। मैं उसके कहने से मूर्ख थोड़ी ही बन रही हूँ।’’

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