उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
अगले दिन गवर्नर ने इन्द्रनारायण को भेंट के लिए बुला लिया। गवर्नर ने बियाना और वहाँ की यूनिवर्सिटी तथा हस्पताल का वृत्तान्त जाना। कई प्रश्न हुए, जिनका इन्द्र ने अपने ज्ञान के अनुसार ठीक-ठीक उत्तर दे दिया। गवर्नर बहादुर ने कहा, ‘देखिए! यहाँ भारत में देसी इलाज के तरीके हमारी उन्नति में बहुत ही बाधक हैं। राजनीतिक विचार से हम उनका विरोध नहीं कर सकते, परन्तु साइंस हमको विवश करती है कि इनको ऐसे निकाल फेंके, जैसे खेत से घास-फूस निकाल दिया जाता है। सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट ने तुम्हारा ‘सिलैक्शन’ इस कारण किया है कि तुम साइंस के मर्म को जानते हो। तुम्हारा ‘नेचर’ में लेख इस बात का ही सूचक है कि तुम एक आदमी की समस्या और उसका सुझाव साइंटिफिक तरीके से करना जानते हो।
‘‘भारत और प्रान्त की सरकार तुमसे बहुत आशाएँ लगाएँ हुए हैं।’’
इन्द्रनारायण इस भेंट में गवर्नर बहादुर का अपने में विश्वास प्रकट किया जाते देख गर्व से फूल गया।
जिस दिन इन्द्रनारायण ने अपने काम का चार्ज लिया, उसी दिन रायसाहब रमेशचन्द्र सिन्हा ने उसके परीक्षा में सफल होने के उपलक्ष में चाय-पार्टी दी। नगर-भर के लगभग एक हजार लोगों को चाय पर बुलाया गया था।
इन्द्रनारायण की रायसाहब और उनके अन्य मित्रों ने बहुत ही प्रशंसा की। कुछ प्रान्तीय सरकारी के अधिकारी भी बुलाए गए थे। उन्होंने भी अपने नये डायरेक्टर की प्रशंसा के पुल बाँध दिए।
इस पार्टी के पश्चात् तो इन्द्रनारायण ऐसा अनुभव करने लगा जैसे वह आकाश में उड़ने लगा है। पार्टी में उसकी योग्यता की और उसकी पत्नी के सौन्दर्य की चर्चा ही चारों ओर हो रही थी।
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