उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
शारदा अपने कमरे की ओर चल पड़ी। जब इन्द्र उसके पीछे जाने लगा तो रजनी ने इन्द्र को आवाज दे दी, ‘‘इन्द्र भैया!’’
इन्द्र रुककर लौट आया। रजनी ने उसको कहा, ‘‘जरा इधर आना।’’
इन्द्र भीतर आया तो उसने एक छड़ी, जो किसी समय रायसाहब हाथ में रखा करते थे और जिस पर अकस्मात् रजनी की दृष्टि जा पड़ी थी, उठाकर कहा, ‘‘भैया! इसको मोड़ो तो!’’
इन्द्रनारायण विस्मय से रजनी का मुख देखने लगा। रजनी ने कहा, ‘‘मुझको इसे मोड़ना है। जरा जोर लगाकर मोड़ दो। मुझसे मुड़ती नहीं।’’
‘‘क्या करोगी मोड़कर?’’
‘जब कोई काम बताया जाए तो ‘क्यों क्या’ पूछकर टालने का ढंग भी बियाना में सिखाया जाता है क्या?’’
इन्द्रनारायण हँस पड़ा। आज वह बहुत प्रसन्न था। अपनी प्रशंसा से भी अधिक वह शारदा के भव्य सौन्दर्य और भव्य व्यवहार की प्रशंसा सुन-सुनकर बल्लियों कूद रहा था। वह शारदा को इस बात की बधाई देने के लिए ही अपने कमरे में बुला रहा था। इस कारण उसने रजनी के कहने का भाव समझने का यत्न छोड़, छड़ी ले ली और उसको किनारों से पकड़कर मोड़ने लगा। छड़ी मोटे बेंत की थी। वह मुड़ गई। रजनी ने कहा, ‘‘थोड़ा और।’’ इन्द्र ने और जोर लगा दिया। इस पर भी रजनी सन्तुष्ट नहीं हुई। उसने कहा, ‘‘भैया, थोड़ा और।’’
इन्द्र ने गम्भीर साँस लेकर और जोर लगाकर मोड़ा तो छड़ी दो टूक हो गई।
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