उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
|
410 पाठक हैं |
संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘अभी कॉफी समाप्त कर हम डाईस रूम में चलेंगे। मैं आपको उनके दर्शन करा दूँगी। एक बात स्मरण रखिएगा। इस विषय में कभी किसी से बात हो तो वहाँ मेरा नाम न लीजिएगा। यदि इस रहस्य को खोलने वाली का पता उनको लग गया तो एक तो उनके आक्रमण से मैं आपकी रक्षा नहीं कर सकूँगी। दूसरे, कदाचित् वे मुझको भी हानि पहुँचाने का यत्न करें।’’
‘‘नहीं। आपका नाम इस विषय में नहीं आएगा।’’
कॉफी समाप्त हुई तो वे जुआ खेलने के कमरे में जा पहुँचीं। वहाँ बहुत-सी मेजें लगी थीं। उन पर बैठी स्त्रियाँ और पुरुष पासे फेंक रहे थे। कुछ ताश भी खेल रहे थे। कोई मेज खाली नहीं थी। ऐना शारदा को मेजों के बीच से ऐसे ले जा रही थी मानो वे कोई खाली स्थान खेलने के लिए ढूँढ़ रही हों।
शारदा को यह देख बड़ा विस्मय हुआ कि एक मेज पर उसका पति बैठा ताश के पत्ते बाँट रहा है। ऐना को भी विस्मय हुआ था और उसके मुख से ओह शब्द निकल गया था। उसी मेज से एक आदमी ने हाथ उठाकर ऐना का ध्यान आकर्षित कर कहा, ‘‘आपके लिए इधर स्थान है।’’
ऐना तो उधर ही जा रही थी। उसी मेज पर इन्द्रनारायण बैठा था। इन्द्र ने ऐना के साथ शारदा को आते देखा तो पत्ते मेज पर रख दिए। उस मेज से एक आदमी उठकर साथ की मेज से एक कुर्सी उठा लाया। एक खाली कुर्सी वहाँ पहले ही पड़ी थी।
जब दोनों औरतें बैठ गयीं तो उसी आदमी ने ऐना से कहा, ‘‘वी मस्ट थैंक यू फॉर इन्ट्रोड्यूसिंग दी ब्राइटैस्ट स्टार ऑफ अवर क्लब, मिस इरीन! (हम आपका धन्यवाद करते हैं कि आप क्लब के एक सबसे उज्जवल सितारे से हमारा परिचय करा रही हैं।)’’
|