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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


इन्द्रनारायण ने जेब में हाथ डाल उसको ऊपर उठा शारदा को दिखा दिया कि क्या हो गया है। शारदा ने कटी जेब देखकर व्यंग्य से कह दिया, ‘‘तो जेब ही लापता है!’’

‘‘देख तो रही हो। उन रुपयों के अतिरिक्त मेरा अपना पर्स भी था।’’

‘‘उसमें क्या कुछ था?’’

‘‘सौ रुपये से ऊपर थे।’’

शारदा हँस पड़ी। उसने अपने पति से कुछ नहीं कहा। केवल अपने मन में वह विचार करने लगी थी कि उनको क्लबों में नहीं जाना चाहिए। वह अपने मन में योजना बनाने लगी कि किस प्रकार वह अपने पति को क्लब में जाने को मना कर सकती है।

इसके कई दिन पीछे ऐना शारदा से मिलने आयी। शारदा उसके आने को पसन्द नहीं करती थी। इस पर भी उसने निश्चय किया हुआ था कि द्वार पर आए से कभी दुर्व्यवहार नहीं करेगी। इस कारण उसने ऐना को बिठाया। उसको जलपान के लिए पूछा। ऐना ने कह दिया, ‘‘इस समय तो कोई ठंडा पेय ही ठीक रहेगा।’’ इस समय दिन के ग्यारह बज रहे थे।

शारदा ने बैरा के लिए घंटी बजाई। वह आया तो उसको औरेंज स्क्वैश लाने के लिए कह दिया। शारदा ने पूछ लिया, ‘‘सुनाइए मिस इरीन! कैसे आना हुआ है?’’

‘‘उस दिन के बाद मैं तीन-चार बार क्लब जा चुकी हूँ। आपके दर्शन नहीं हुए। परसों रजनी बहन से आपके विषय में बातचीत हुई थी। रजनी ने आपकी बहुत ही प्रशंसा की है। परन्तु मुझको कुछ ऐसा प्रतीत हुआ है कि वे भी आपके पति के व्यवहार से प्रसन्न नहीं हैं। आज तो मैं उनके कहने पर ही आयी हूँ।’’

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