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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


शारदा भौचक्की हो ऐना का मुख देखती रह गई। उसने बहुत देर तक ऐना का मुख देखने के बाद पूछ लिया, ‘‘तो रजनी से आपका परिचय है?’’

‘‘रजनी भी मेरी सहपाठिन है। श्रेणी में हम तीन ही तो लड़किय़ाँ थीं। एक रजनी, दूसरी मैं और तीसरी एक और मिस टिमोथी है। वह इस समय टेलीफोन दफ्तर के एक इंजीनियर, मिस्टर बैस्टन, की पत्नी है। बैस्टन न तो किसी क्लब के सदस्य बने हैं, न ही किसी मित्र के यहाँ अधिक आते-जाते हैं। वे तो कट्टर कैथॉलिक मत को मानने वाले हैं और क्लब को शैतान का घर मानते हैं।’’

‘‘मैंने टिमोथी बैस्टन से तुम्हारा जिक्र किया था। वह तुमसे मिलने के लिए कहती थी। किसी दिन उसको लेकर आऊँगी। रजनी तो सप्ताह में मुझको एक बार अवश्य मिलती है। वह हमारे पड़ौस की मजदूरों की एक बस्ती में उनकी देखभाल और चिकित्सा के लिए आया करती है। चार-पाँच बस्तियों में वह जाती है, इस कारण हमारी ओर सप्ताह में एक बार ही आ पाती है। उस दिन वह मुझको मिलकर जाती है। वह जब आती है तो हमारी कोठी में चाय पीती है। नवाब साहब से भी उसका परिचय है। नवाब साहब तो रजनी के ‘मोतकिद मुरीद’ हैं।’’

‘‘वह क्या होता है?’’ शारदा ने न समझते हुए पूछा।

‘‘डिवोटी।’’

शारदा समझ गयी। वह मुस्कराई।

ऐना ने अपना कहना जारी रखा, ‘‘परसों रजनी आयी तो मुझको स्मरण हो आया कि रजनी और मिस्टर इन्द्रनारायण बहन-भाई हैं। वह भी अवश्य आपको जानती होगी। इससे मैंने उस दिन की घटना का उल्लेख कर दिया। इससे वह बहुत चिन्ता व्यक्त करने लगी थी। उसने कह दिया था, ‘‘मैं तो इन्द्र से अब बहुत कम बोलती हूँ। तुम शारदा से मिलकर कहो कि वह अपने पति पर काबू रखे, नहीं तो बहुत हानि हो सकती है।’

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