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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573
आईएसबीएन :9781613011096

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


मदन समझ गया कि लैसली के पीछे महेश्वरी को भेजना उचित नहीं है। उसने नीला से पूछने का निश्चय कर लिया। परन्तु उससे पूर्व ही मिस इलियट आ गई। मदन ने उससे लैसली के विषय में चर्चा छेड़ी तो इलियट ने कह दिया, ‘‘अब उसके दर्शन दुर्लभ ही हैं।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘वह आपसे नाता तोड़ चुकी है।’’

‘‘यह तुम कैसे कहती हो?’’

‘‘क्यों, महेश्वरी ने नहीं बताया आपको? उसके सम्मुख ही तो सब बात हुई थी।’’

मदन ने महेश्वरी के मुख पर देखा तो वह चुपचाप अन्यमनस्क भाव से बैठी रही। मदन समझ गया कि उसने जान-बूझकर उससे बात छिपाई है। उसने पुनः इलियट से पूछा, ‘‘आप ही बता दीजिए। उसने तो मुझे कुछ नहीं बताया।’’

‘‘वह अब अपकी पत्नी बनकर रहना पसन्द नहीं करती। यह बात उसने अपने माता-पिता के सम्मुख ही हमको बताई थी।’’

‘‘उसके माता-पिता ने क्या कहा था?’’

‘‘कुछ नहीं। अमेरिका में माता-पिता लड़की की इन बातों में हस्तक्षेप नहीं किया करते।’’

‘‘तो बात निश्चित हो गई थी?’’

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