उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘परन्तु एक तो भारत से चलकर यहां आ ही गई है?’’
‘‘मैं उसके मार्ग में बाधक नहीं बनूंगी। मैं तो केवल यह कह रही हूं कि यदि आपको कोई स्वीकार न करे तो एक है जो आपके लिए जीवन भर प्रतीक्षा करने के लिए तैयार है।’’
इस प्रकार बात तय हो गई। अगले दिन ही जब महेश्वरी और इलियट आई तो उसने स्पष्ट प्रश्न कर दिया, ‘‘महेश! क्या तुम अब भी मुझसे विवाह करना पसन्द करोगी?’’
‘‘मैं तो हिन्दू हूं न? मेरा विवाह मेरे माता-पिता करेंगे। उन्होंने ही आपको मेरे पति के रूप में चुना हुआ है। अभी तक उन्होंने उस चुनाव को रद्द नहीं किया। अतः मेरे लिए अस्वीकार करने का तो कोई प्रश्न ही नहीं है।’’
‘‘परन्तु उन्हें मेरे अपंग होने का तो ज्ञान नहीं है?’’
‘‘है। मैंने सब समाचार वहां लिख भेजा हैं। आपकी दादी और मेरे पिताजी का सन्देश आया है कि मैं आपको लेकर शीघ्रातिशीघ्र भारत पहुंच जाऊं।’’
‘‘तो तुमने दादी को भी मेरी अवस्था का ज्ञान करा दिया है?’’
‘‘हां, इतने दिनों तक आपका कोई पत्र अथवा समाचार न मिलने के कारण वे बहुत चिन्तित थीं।’’
‘‘उनको मेरे यहां के विवाह के विषय में भी लिख दिया है?’’
‘‘सब कुछ। मेरे कहने का अभिप्राय है कि आपकी होने वाली सन्तान के विषय में भी।
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