उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘और अभी भी उन्होंने विवाह के विषय में अपना विचार नहीं बदला है?’’
‘‘इस विषय में तो उन्होंने कुछ नहीं लिखा।’’
‘‘मुझे वहां जाने में लज्जा लगती है।’’
‘‘लज्जा किस बात की?’’
‘‘यही कि मैं स्वयं को नियन्त्रित नहीं रख सका।’’
‘‘मेरे पिता तो कदाचित इसके लिए आपको दोषी न मानें।’’
‘‘यह तुम किस प्रकार कह सकती हो?’’
‘‘जब उनको आपके लैसली से, प्रथम रात की कथा का ज्ञान होगा, तो वे यही समझेंगे जो मैं समझी हूं। यही उस रात की युक्तियुक्त विवेचना भी है।’’
‘‘तुम क्या समझी हो?’’
‘‘यही, कि यह कामातुर आपको पथभ्रष्ट करने में सफल हो गई थी। मैं तो यह भी समझती हूं कि पहले दिन उसके नग्न चित्र को देखने का अवसर भी उसने उत्पन्न किया था।’’
‘‘तो तुम मुझको दोषी नहीं मानती?’’
‘‘आपकी दुर्बलात्मा मानती हूं। आप उन विरले आत्मबल वालों में से नहीं है जो वेश्याओं के नग्न नृत्य से भी प्रभावित नहीं होते। आप विश्वामित्र से अधिक आत्मबल प्रकट नहीं कर सके।’’
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