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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573
आईएसबीएन :9781613011096

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


मदन गम्भीर विचार में लीन हो गया। बहुत देर तक वह इस प्रकार अपने विचारों में डूबा रहा। वह विचार कर रहा था कि अपने बड़ों से क्षमा मांगकर उसको अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहिए। जहां तक महेश्वरी का प्रश्न था, वह उसको समझाना चाहता था। महेश्वरी ने इसका उपाय भी बता दिया। उसका कहना था कि उसके विवाह का निर्णय उसके माता-पिता ने किया है और वे ही इस निर्णय को रद्द कर सकते हैं। अतः वह समझता था कि महेश्वरी को अपने साथ विवाह के दुर्भाग्य से बचाने के लिए, उसके पिता को समझना चाहिए कि वह अब किसी भी शुभ गुण, लक्षणों वाली कन्या का पति होने के योग्य नहीं रहा। इससे वह विचार कर रहा था कि उसको शीघ्रातिशीघ्र भारत लौट जाना चाहिए।

मिस इलियट भी विचारमग्न मदन का मुख देख रही थी। वह समझती थी कि यह युवक कितना भाग्यशाली है कि महेश्वरी जैसी लड़की उसके दुर्भाग्यपूर्ण में साझीदार बनने के लिए तैयार है। वह अपने विषय में विचार कर रही थी कि अब अमेरिका में रहने में उसके लिए कोई आकर्षण नहीं बचा है। वह समझती थी कि मिशिगन से बाहर अथवा अमेरिका से बाहर, हिन्दुस्तान क्या और चीन व जापान क्या? कुछ अन्तर नहीं पड़ता। वह मन-ही-मन निर्णय कर रही थी कि वह भारत जायेगी और वहां अपने संचित धन और पिता से मिलने वाले एलाउन्स के भरोसे जीवन-यापन कर लेगी।

महेश्वरी अपने जीवन का कार्यक्रम बना रही थी। वह विचार कर रही थी कि दरियागंज का मकान बेचकर और कुछ और रुपया लगाकर वह दिल्ली से बाहर एक खुली कोठी ले लेगी और एक मोटर लेकर अपने पति को घुमाती हुई जीवन व्यतीत कर देगी।

अस्पताल से छुट्टी मिली तो महेश्वरी मदन को होटल में ले गई। वहां जाकर उसने भारत लौटने की तैयारी कर ली। सीट बुक कराई गई। जाने से दो दिन पहले मिस इलियट मिलने के लिए आई। उसने बताया कि व अपने पिता से मिलने के लिए जा रही है।

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