लोगों की राय

उपन्यास >> प्रतिज्ञा (उपन्यास)

प्रतिज्ञा (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :321
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8578
आईएसबीएन :978-1-61301-111

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

262 पाठक हैं

‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास विषम परिस्थितियों में घुट-घुटकर जी रही भारतीय नारी की विवशताओं और नियति का सजीव चित्रण है


बोला–अगर उन्होंने ऐसा इरादा किया तो उनसे पहले मैं अंतर्धान हो जांऊगा। मैं यह भार अपने सिर नहीं ले सकता। उन्हें इसको संभालने में मेरी मदद करनी होगी। उन्हें अपनी कमाई लुटाने का पूरा हक था, लेकिन बाप दादों की जायदाद को लुटाने का उन्हें कोई अधिकार न था। इसका उन्हें प्रायश्चित करना पड़ेगा। वह जायदाद हमें वापस करनी होगी, मैं खुद भी कुछ कानून जानता हूँ। वकीलों, मजिस्ट्रेटों से भी सलाह कर चुका हूँ। जायदाद वापस ली जा सकती है। अब मुझे यही देखना है कि इन्हें अपनी संतान प्यारी है या अपना महात्मापन।

यह कहता हुआ संतकुमार पंकजा से पान लेकर अपने कमरे में चला गया।

संतकुमार की स्त्री पुष्पा बिल्कुल फूल सी है, सुन्दर, नाजुक, हल्की-फुल्की, लजाधुर, लेकिन एक नंबर की आत्मभिमानी है। एक-एक बात के लिए कई-कई दिन रूठी रह सकती है। और उसका रूठना भी सर्वथा नए डिजाईन का है। वह किसी से कुछ कहती नहीं, लड़ती नहीं, बिगड़ती नहीं, घर का सब काम-काज उसी तन्मयता से करती है बल्कि और ज्यादा एकाग्रता से। बस जिससे नाराज होती है उसकी ओर ताकती नहीं। वह जो कुछ कहेगा, वह करेगी, वह जो कुछ पूछेगा, जवाब देगी, वह जो कुछ मांगेगा उठा कर दे देगी, मगर बिना उसकी ओर ताके हुए। इधर कई दिन से संतकुमार से नाराज हो गई है और अपनी फिरी हुई आंखों से उसके सारे आघातों का सामना कर रही है।

संतकुमार ने स्नेह के साथ कहा– ‘आज शाम को चलना है न?’

पुष्पा ने सिर नीचा करके कहा– ‘जैसी तुम्हारी इच्छा।’

‘चलोगी न?’

‘तुम कहते हो तो क्यों न चलूंगी?’

‘तुम्हारी क्या इच्छा है?’

‘आखिर किस बात पर नाराज हो?’

‘किसी बात पर नहीं।’

‘खैर, न बोलो, लेकिन वह समस्या यों चुप्पी साधने से हल न होगी।’

पुष्पा के इस निरीह अस्त्र ने संतकुमार को बौखला डाला था। वह खूब झगड़कर उस विचार को शांत कर देना चाहता था। क्षमा मांगने पर तैयार था वैसी बात अब फिर मुंह से न निकालेगा, लेकिन उसने जो कुछ कहा था वह उसे चिढ़ाने के लिए नहीं, एक यथार्थ बात को पुष्ट करने के लिए ही कहा था। उसने कहा था जो स्त्री पुरुष पर अवलंबित है, उसे पुरुष की हुकूमत माननी पड़ेगी। वह मानता था कि उस अवसर पर यह बात उसे मुंह से न निकालनी चाहिए थी। अगर कहना आवश्यक भी होता तो मुलायम शब्दों में कहना था, लेकिन जब एक औरत अपने अधिकारों के लिए पुरुष से लड़ती है उसकी बराबरी का दावा करती है तो उसे कठोर बातें सुनाने के लिए तैयार रहना चाहिए। इस वक्त भी वह इसलिए आया था कि पुष्पा को कायल करे और समझाए कि मुंह फेर लेने से ही किसी बात का निर्णय नहीं हो सकता। वह इस मैदान को जीत कर यहां एक झंडा गाड़ देना चाहता था जिसमें इस विषय पर कभी विवाद न हो सके। तब से कितनी ही नई-नई युक्तियां उसके मन में आ गई थीं, मगर जब शत्रु किले के बाहर निकला ही नहीं तो उस पर हमला कैसे किया जाए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book