उपन्यास >> प्रतिज्ञा (उपन्यास) प्रतिज्ञा (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास विषम परिस्थितियों में घुट-घुटकर जी रही भारतीय नारी की विवशताओं और नियति का सजीव चित्रण है
यह भावुकता नहीं, मन के सच्चे भाव हैं।’
‘मैंने सच्चे भाववाले युवक बहुत कम देखे।’
‘दुनिया में सभी तरह के लोग होते हैं।’
‘अधिकतर शिकारी किस्म के। स्त्रियों में तो वेश्याएं ही शिकारी होती हैं, पुरुषों में तो सिरे से सभी शिकारी होते हैं।’
‘जी नहीं, उनमें अपवाद भी बहुत हैं।’
‘स्त्री रूप नहीं देखती। पुरुष जब गिरेगा रूप पर। इसलिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। मेरे यहां कितने रूप के उपासक आते हैं। शायद इस वक्त भी कोई साहब आ रहे हों। मैं रूपवती हूं, इनमें नम्रता का कोई प्रश्न नहीं। मगर मैं नहीं चाहती कोई मुझे केवल रूप के लिए चाहे।’
संतकुमार ने धड़कते हुए मन से कहा–आप उनमें मेरा तो शुमार नहीं करतीं?
तिब्बी ने तत्परता के साथ कहा–आपको तो मैं अपने चाहनेवालों में समझती ही नहीं।
संतकुमार ने माथा झुकाकर कहा–यह मेरा दुर्भाग्य है!
‘आप दिल से नहीं कह रहे हैं, मुझे कुछ ऐसा लगता है कि आपका मन नहीं पाती। आप उन आदमियों में हैं जो हमेशा रहस्य रहते हैं।’
‘यही तो मैं आपके विषय में सोचा करता हूं।’
मैं रहस्य नहीं हूं। मैं तो साफ कहती हूं मैं ऐसे मनुष्य की खोज में हूं, जो मेरे हृदय में सोए प्रेम को जगा दे। हां, वह बहुत नीचे गहराई में है, और उसी को मिलेगा जो गहरे पानी में डूबना चाहता हो। आपमें मैंने कभी उसके लिए बेचैनी नहीं पायी। मैंने अब तक जीवन का रोशन पहलू ही देखा है। और उससे ऊब गई हूं। अब जीवन का अंधेरा पहलू देखना चाहती हूं, जहां त्याग है, रुदन है, उत्सर्ग है। संभव है उस जीवन से मुझे बहुत जल्द घृणा हो जाए, लेकिन मेरी आत्मा यह नहीं स्वीकार करना चाहती कि वह किसी ऊंचे ओहदे की गुलामी या कानूनी धोखेधड़ी या व्यापार के नाम से की जाने वाली लूट को अपने जीवन का अधार बनाए। श्रम और त्याग का जीवन ही मुझे तथ्य जान पड़ता है। आज तो समाज और देश की दूषित अवस्था है उससे असहयोग करना मेरे लिए जुनून से कम नहीं है। मैं कभी-कभी अपने ही मन से घृणा करने लगती हूं। बाबूजी को एक हजार रुपये अपने छोटे से परिवार के लिए लेने का क्या हक है और मुझे बे काम-धंधे इतने आराम से रहने का क्या अधिकार है? मगर यह सब समझ कर भी मुझमें कर्म करने की शक्ति नहीं है। इस भोग-विलास के जीवन ने मुझे कर्महीन बना डाला है। और मेरे मिजाज में अमीरी कितनी है यह भी आपने देखा है। मेरे मुंह से बात निकलते ही अगर पूरी न हो जाए तो मैं बावली हो जाती हूँ। बुद्धि का मन पर कोई नियंत्रण नहीं है। जैसे शराबी बार-बार हराम कहने पर पर शराब नहीं छोड़ सकता वही दशा मेरी है। उसी की भांति मेरी इच्छाशक्ति बेजान हो गई है।
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