लोगों की राय

उपन्यास >> प्रतिज्ञा (उपन्यास)

प्रतिज्ञा (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :321
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8578
आईएसबीएन :978-1-61301-111

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

262 पाठक हैं

‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास विषम परिस्थितियों में घुट-घुटकर जी रही भारतीय नारी की विवशताओं और नियति का सजीव चित्रण है


दान०–यहां देवताओं के ऐसे भक्त नहीं हैं। यह पांच आने पैसे हैं। सवा पाव लड्डू मंगवा लो, चलो छुट्टी हुई।

प्रेमा–राम जाने, तुम नीयत के बड़े छोटे हो, भैंस से चींटी वाली मसल करोगे क्या? शाम को सवा सेर कहा था, अब सवा पाव आ गए। मैंने सवा मन की मानता की है।

दान०–सच! मार डाला! मेरा तो दिवाला ही निकल जाएगा।

कमलाप्रसाद ने घर में कदम रखा। प्रेमा ने जरा घूंघट आगे खींच लिया और सिर झुकाकर खड़ी हो गई। कमला ने प्रेमा की तरफ ताका भी नहीं। दाननाथ से बोले–भाई साहब, तुमने तो आज दुश्मनों की जबान बंद कर दी। सब-के-सब घबराए हुए हैं। आज मजा तो जब आए कि चन्दे की अपील खाली जाए, कौड़ी न मिले।

दान०–उन लोगों की संख्या भी थोड़ी नहीं है। ज्यादा नहीं, तो बीस-पचीस हजार तो मिल ही जाएंगे।

कमला०–कौन, अगर पांच सौ से ज्यादा पा जाएं तो मूंछ मुड़ा लूं, काशी में मुंह न दिखाऊं। अभी एक हफ्ता बाकी है। घर-घर जाऊंगा। पिताजी ने मुकाबले में कमर बांध ली है। वह तो पहले ही सोच रहे थे कि इन विधर्मियों का रंग फीका करना चाहिए; लेकिन कोई अच्छा बोलने वाला नजर न आता था। अब आपके सहयोग से तो हम सारे शहर को हिला सकते हैं। अभी एक हजार लठैत तैयार हैं पूरे एक हजार। जिस दिन महाशयजी की अपील होगी चारों तरफ रास्ते बंद कर दिए जाएंगे। कोई जाने ही न पावेगा। बड़े-बड़ों को तो हम ठीक कर लेंगे और ऐरे-गौरों के लिए लठैत काफी हैं। अधिकांश पढ़े-लिखे आदमी ही तो उनके सहायक हैं। पढ़े लिखे आदमी लड़ाई-झगड़े के करीब नहीं जाते। हां, कल एक स्पीच तैयार रखिएगा। इससे बढ़कर हो। उधर उनका जलसा हो, इधर उसी वक्त हमारा जलसा भी हो। फिर देखिए, क्या गुल खिलता है।

दाननाथ ने पुचारा दिया–आपको मालूम नहीं कि हुक्काम सब उनकी तरफ हैं। हाकिम जिला ने तो जमीन देने का वादा किया है।

कमलाप्रसाद हाकिम–जिला का नाम सुनकर सिटपिटा गए। कुछ सोच कर बोले–हुक्काम उनकी पीठ भले ही ठोंक दें, पर रुपये देने वाले जीव नहीं हैं। पाएं तो उलटे बाबू साहब को मूंड लें। हां, कलक्टर साहब का मामला बड़ा बेढब है। मगर कोई बात नहीं। दादाजी से कहता हूं–आप शहर के दस-पांच बड़े-बड़े रईसों को लेकर साहब से मिलिए और उन्हें समझाकर कि अगर आप इस विषय में हस्तक्षेप करेंगे, तो शहर में बलवा हो जाएगा।

यह कहते-कहते एकाएक कमला ने प्रेमा से पूछा–तुम किस तरफ हो प्रेमा?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book