उपन्यास >> प्रतिज्ञा (उपन्यास) प्रतिज्ञा (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास विषम परिस्थितियों में घुट-घुटकर जी रही भारतीय नारी की विवशताओं और नियति का सजीव चित्रण है
इस पर चारों तरफ तालियां पड़ गईं, और लोगों ने शोर मचाकर आसमान सिर पर उठा लिया।
अमृतराय ने फिर कहा–मैं जानता हूं, कुछ लोग यहां सभा की कार्यवाही में विघ्न डालने का निश्चय करके आए हैं। जिन लोगों ने उन्हें सिखा-पढ़ाकर भेजा है, उन्हें भी जानता हूं...
इस पर एक महाशय बोले–आप किसी पर आक्षेप क्यों करते हैं? इसका फल बुरा होगा।
अमृतराय के पक्ष के एक युवक ने झल्लाकर कहा–आपको यदि यहां रहना है, तो शान्त होकर व्याख्यान सुनिए, नहीं तो हॉल से चले जाइए।
कई आदमियों ने लकड़ियां संभालते हुए कहा–हॉल किसी के बाप का नहीं है। अगर कुछ गुरदा रखते हो, उतर आओ नीचे।
अमृतराय ने जोर से कहा–क्या आप लोग फसाद करने पर तुले हुए हैं? याद रखिए, अगर फसाद हुआ, तो इसका दायित्व आपके ऊपर होगा!
कई आदमियों ने कहा–तो क्या आप फांसी पर चढ़ा देंगे? आप ही का संसार में अखण्ड राज्य है? आप ही जर्मनी के कैसर हैं?
इस पर फिर चारों ओर तालियां पड़ीं, और कहकहों ने हॉल की दीवारें हिला दीं।
एक गुण्डे ने, जिसकी आंखें भंग के नशे में चढ़ी हुई थीं, आगे बढ़कर कहा बक्खान पीछे होई, आओ हमार-तुम्हार पहले एक एकड़ होइ जाए! कॉलेज के एक युवक ने आपे से बाहर होकर उस गुण्डे को इतने जोर से धक्का दिया कि वह कई आदमियों के संभालने पर भी न संभल सका। फिर क्या था, सैकड़ों आदमी छड़ियां कुर्सियां ले-लेकर मंच की ओर लपके। कॉलिज के सभी विद्यार्थी पहली सफ में बैठे हुए थे। उनका भी खून गर्म हो उठा। उन्होंने भी कुर्सियां उठाईं, अमृतराय भी मंच से उतर आए; और विद्यार्थियों को समझाने की चेष्टा करने लगे! मगर उस वक्त कौन किसकी सुनता था? निकट था कि दोनों पक्षों में घोर युद्ध छिड़ जाए कि सहसा एक महिला आकर मंच पर खड़ी हो गई। सभी लोगों का ध्यान उसकी ओर आकर्षित हो गया। उसके विशाल नेत्रों में इतनी विनय थी और दीपक की भांति चमकते हुए मुखमण्डल पर इतनी यातना थी कि कुर्सियां ऊपर उठी रह गईं। डण्डे नीचे आ गये। प्रत्येक हृदय में यह प्रश्न हुआ–यह युवती कौन है? यह मोहनी कहां से अवतरित हो गईं? सभी चकित होकर उसकी ओर ताकने लगे!
महिला ने प्रकम्पित स्वर में कहा–सज्जनों, आपके सम्मुख आपकी बहन–आपकी कन्या खड़ी आपसे एक भिक्षा मांग रही है। उसे निराश न कीजिएगा...
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