उपन्यास >> प्रतिज्ञा (उपन्यास) प्रतिज्ञा (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास विषम परिस्थितियों में घुट-घुटकर जी रही भारतीय नारी की विवशताओं और नियति का सजीव चित्रण है
कमला ने द्वार पर खड़े-खड़े कहा–अन्दर तो आओ, तुम तो इस तरह खड़ी हो तो मानो चपत मारकर भाग जाओगी। जरा शान्त होकर बैठो तो सुनूं क्या बात है। इस घर में कौन है, जो तुम्हें आधी बात भी कहने का साहस कर सकता है; अपना और उसका खून एक कर दूं। मगर अन्दर तो आओ।
पूर्णा–मेरे अन्दर आने की जरूरत नहीं। यों ही ताने मिल रहे हैं, फिर तो न जाने क्या कलंक लग जाएगा।
कमलाप्रसाद ने त्योरियां चढ़ाकर कहा–किसने ताना दिया है? सुमित्रा ने?
पूर्णा–किसी ने दिया हो, आपको पूछना और मेरा कहना दोनों व्यर्थ हैं। तानेवाली बात होगी तो सभी तानें देंगे। आप किसी का मुंह नहीं बन्द कर सकते। केले के लिए तो ठीकरा भी पैनी छुरी बन जाता है। सबसे अच्छा यही है कि मैं यहां से चली जाऊं। आप लोगों ने मेरा इतने दिन पालन किया। इसके लिए मेरा एक-एक रोआं आप लोगों का जस गाएगा।
‘कहां जाना चाहती हो?’
‘कहीं-न-कहीं ठिकाना लग ही जाएगा। और कुछ न होगा तो गंगाजी तो हैं ही।’
‘तो पहले मुझे थोड़ा-सा संखिया देती जाओ।
पूर्णा ने तिरस्कार के भाव से देखकर कहा–कैसी बात मुंह से निकालते हो बाबूजी। मेरा प्राण भी आप लोगों के काम आए तो मुझे उसके देने में आनन्द मिलेगा, लेकिन बात बढ़ती जाती है और आगे चलकर न-जाने और कितनी बढ़े इसलिए मेरा यहां से टल जाना ही अच्छा है।
कमलाप्रसाद ने पूर्णा का हाथ पकड़कर बलात् अन्दर खींच लिया और द्वार बन्द करता हुआ बोला–हां...अब कहो क्या कहती हो? सुमित्रा ने तुम्हें कुछ कहा है।
पूर्णा ने द्वार से चिपकी हुई बोली–पहेल द्वार खोल दो तो मैं बताऊं। क्यों व्यर्थ मेरा जीवन नष्ट कर रहे हो।
‘खोल दूंगा, ऐसी जल्दी क्या है? पानी में तो भीग नहीं रही हो, या मैं कोई हौआ हूं? अगर सुमित्रा ने तुम्हें कुछ कहा है तो मैं ईश्वर की कसम खाकर कहता हूं, कल ही उसे घर से निकाल बाहर करूंगा और फिर कभी मुंह न देखूंगा। देखो पूर्णा अगर तुमने द्वार खोला तो पछताओगी। छाती में छुरी मार लूंगा। सच कहता हूं छाती में छुरी मार लूंगा। छः महीने हुए, जब मैंने तुम्हें पहले-पहले देखा तब से मेरे चित्त की जो दशा हो रही है, वह तुम नहीं जान सकती। इतने दिनों किसी तरह सब्र किया; पर अब सब्र नहीं होता। खैर, जब-तक दर्शन हो जाते थे, जिससे हृदय को कुछ ढाढ़स होता था, अब तुम यहां से जाने की बात कहती हो। तुम्हारा यहां से जाना मेरे शरीर से प्राणों का जाना है। मैं तुम्हें रोक नहीं सकता–तुम्हें रोकने का मुझे कोई अधिकार नहीं है। विवाह संसार के स्वांग को तो सोलह आने अधिकार दे देता है; पर प्रेम को, जो ईश्वर का स्वरूप है, रत्ती भर भी अधिकार नहीं देता, जाओ, मगर कल ही सुनोगी कि कमला इस संसार से कूच कर गया।’
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