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प्रतिज्ञा (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :321
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8578
आईएसबीएन :978-1-61301-111

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‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास विषम परिस्थितियों में घुट-घुटकर जी रही भारतीय नारी की विवशताओं और नियति का सजीव चित्रण है


यह कहते हुए कमला ने एक कदम आगे रखा और चाहा कि पूर्णा का हाथ पकड़ ले। पूर्णा पीछे हट गई। कमला और आगे बढ़ा। सहसा पूर्णा ने दोनों हाथ में कुर्सी उठा ली और उसे कमला के मुंह पर झोंक दिया। कुर्सी का एक पाया जोर से कमला के मुंह पर पड़ा, नाक में गहरी चोट आई और एक दांत भी टूट गया। कमला इस झोंके से न संभल सका। चारों खाने चित्त जमीन पर गिर पड़ा। नाक से खून जारी हो गया। उसे मूर्छा आ गयी। उसे इसी दशा में छोड़कर पूर्णा लपककर बागीचे से बाहर निकल आई। सड़क पर सन्नाटा था। पूर्णा को अब अपनी जान बचाने की फिक्र थी। कहीं उसे कोई पकड़ न ले। कैदी बनकर, हथकड़ियां पहने हुए हजारों आदमियों के सामने जाना उसके लिए असह्य था। समय बिल्कुल न था। छिपने की कहीं जगह न थी। एकाएक उसे एक छोटी सी पुलिया दिखाई दी। वह लपककर सड़क के नीचे उतरी और उसी पुलिया में घुस गयी।

इस समय उस अबला की दशा अत्यंत कारूणिक थी। छाती धड़क रही थी। प्राण नहीं में समाए थे! जरा भी खटका होता, तो वह चौंक पड़ती। सड़क पर चलने वालों की परछाई नाले में पड़ते देखकर उसकी आंखों में अंधेरा-सा छा जाता। कहीं उसे पकड़ने कोई न आता हो। अगर कोई आ गया तो, वह क्या करेगी?

उसने एक ईंट अपने पास रख ली। इसी ईंट को वह अपने सिर पर पटक देगी पुलिस वालों के पंजे में फंसने से सिर पटक कर मर जाना कहीं अच्छा था। सड़क पर आने-जाने वालों की हलचल सुनाई दे रही थी। उनकी बातें भी कभी-कभी कानों में पड़ जाती थीं। एक माली बदरीप्रसाद को खबर देने को दौड़ गया था। एक घण्टे बाद सड़क पर से एक बग्घी निकली। मालूम हुआ, बदरीप्रसाद आ गए। आपस में क्या बातें हो रही होंगी? शायद खाने में उसकी इत्तिला की गई हो। बगीचे से एक तांगा निकलता हुआ दिखाई दिया। शायद वह डाक्टर होगा। चोट तो ऐसी नहीं आई लेकिन बड़े आदमियों के लिए जरा-सी बात बहुत हो जाती है।

इस वक्त पूर्णा को अपनी उद्दण्डता पर पश्चाताप हुआ। उसने अगर जरा धैर्य से काम लिया होता तो कमलाप्रसाद कभी ऐसी शरारत न करता। कौशल से काम निकल सकता था; लेकिन होनहार को कौन टाल सकता है? मगर अच्छा ही हुआ बच्चे की आदत छूट जाएगी। भूलकर भी ऐसी नटखटी न करेंगे। लाला ने समझा होगा, औरत जात कर ही क्या सकती है, धमकी में आ जाएगी। यह नहीं जानते थे कि सभी औरतें एक-सी नहीं होतीं।

सुमित्रा तो सुनकर खुश होगी। बच्चा को खूब ताने देगी। ऐसा आड़े हाथों लेगी कि वह भी याद करेंगे। लाला बदरीप्रसाद भी खबर लेंगे। हां अम्मांजी को बुरा लगेगा। उनकी दृष्टि में तो उनका बेटा देवता है, दूध का धोया हुआ है।

पुलिया के नीचे जानवरों की हड्डियां पड़ी हुई थीं। पड़ोस के कुत्ते प्रतिद्वंद्वियों की छेड़छाड़ से बचने के लिए इधर-उधर से हड्डियों को ला-लाकर एकांत में रसास्वादन करते। उनसे दुर्गन्ध आ रही थी। इधर-उधर फटे पुराने चीथड़े, आम की गुठलियां, कागज के रद्दी टुकड़े पड़े हुए थे। अब तक पूर्णा ने इस जघन्य दृश्य की ओर ध्यान न दिया था। अब उन्हें देखकर उसे घृणा होने लगी। वहां एक क्षण रहना भी असह्य जान पड़ने लगा। पर जाए कहां? नाक दबाए; उकड़ू बैठी आने-जाने वालों की गति-प्रगति पर कान लगाए हुए थी।

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