लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8580
आईएसबीएन :978-1-61301-178

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

154 पाठक हैं

मुंशी प्रेमचन्द की चार प्रसिद्ध कहानियाँ


उन्होंने नीति-शास्त्र का खूब अध्ययन किया था। उन्हें इस शास्त्र से बहुत प्रेम था। वे कानून को ही अपना अफसर समझते थे। वे अफसरों को खुश रखना चाहते थे, लेकिन जब उनका हुक्म कानून के विरुद्घ होता तो वे उसे न मानते थे।

उन्हें नौकरी करते पाँच साल हो चुके थे। अलीगढ़ में तैनात थे। ठाकुर दलजीतसिंह के घर डाका पड़ा। पुलिस को असामियों पर सन्देह हुआ। कई गाँव के असामी पकड़े गये, गवाहियाँ बनायी गयीं और असामियों पर मुकदमा चलने लगा। बेचारे किसान निपराध थे। चारों ओर कुहराम मच गया। कितने ही किसान जिलाधीश के पास जाकर रोये। जिलाधीश ठाकुर साहब के मित्र थे, साल में दो-चार दावतें खाते, उनके हलके में शिकार खेलते, उनकी मोटर और फिटन पर सवार होते थे। असामियों की गुस्ताखी पर बिगड़ गये। उन्हें डांट-डपटकर दुत्कार दिया। ज्वाला और भी दहकी। साहब ने बाबू हरिबिलास को बंगले पर बुलाकर ताकीद की कि मुलजिमों को सजा अवश्य करना, नहीं जेल में बलवा हो जायगा; किन्तु हरिबिलास को जब मालूम हुआ कि गवाह बनाये हुए हैं और ज्यादती ठाकुर साहब की है, तो इन्होंने मुलजिमों को बरी कर दिया। हाकिम जिला ने यह फैसला सुना तो जामे बाहर हो गये। हरिबिलास की रिपोर्ट की, बदली हो गयी।

दूसरी बार फिर नीच जातिवालों के साथ न्याय करने का उन्हें ऐसा ही फल मिला। लखनऊ में थे, वहाँ देहाती मदरसों में नीच जातियों के लड़के दाखिल न होने पाते थे। कुछ तो अध्यापकों का विरोध था, उनसे ज्यादा गाँव के लोगों का। हरिबिलास दौरे पर गये और यह शिकायत सुनी, तो कई अध्यापकों की तम्बीह की, कई आदमियों पर जुर्माना किया। जमींदारों ने यह देखा तो उनसे द्वेष करने लगे। गुमनाम चिट्टियाँ झूठी शिकायतों में भरी हुई हाकिमों के पास पहुँचने लगीं। तहसीलदारों ने जमीदारों को और भी उकसाया। एक कुरमी का इतने ऊँचे पद पर पहुँचना सभी को खटकता था। नतीजा यह हुआ कि लोगों ने अपने लड़के मदरसे से उठा लिये कई मदरसे बन्द हो गये। हरिबिलास की खासी बदनामी हो गयी। हाकिम जिला ने उन्हें वहाँ रखना उचित न समझा। उनकी बदली कर दी। एक दरजा भी घट गया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book