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प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8580
आईएसबीएन :978-1-61301-178

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मुंशी प्रेमचन्द की चार प्रसिद्ध कहानियाँ


मुसलमान महाशय ने कहा, हुजूर वजा फरमाते हैं। चार पैसे में तो एक वक्त की रोटियाँ भी नहीं चल सकती। मगर यहाँ की रिआया सख्ती की ऐसी आदी हो गयी है कि हम चाहे आठ आने ही क्यों न दे, पर बिला सख्ती किये मुखातिल ही नहीं होती। हाँ, यह तो बतलाइए हुजूर, यह आजकल क्या हवा फिर गयी है कि जहाँ देखिए वहीं मदरसे बन्द होते जाते हैं। सुनता हूँ बड़े-बड़े कालेज भी टूट रहे हैं। इससे तालीम का बड़ा नुकसान होगा।

बाबू हरिबिलास को मालूम था कि शिवबिलास इसका क्या जबाब देगा। उसके राजनैतिक विचारों से परिचित थे। दोनों आदमियों में प्रायः इस विषय पर वाद-विवाद होता रहता था। लेकिन वे न चाहते थे कि इन जमींदरो के सामने वे अपने स्वाधीन विचार प्रकट करें। शिवबिलास को बोलने का अवसर न देकर आप ही बोले, मैं तो इसे पागलपन समझता हूँ, निरा पागलपन। यह लोग समझते हैं, कि इन कार्रवाइयों से वे हमारी सरकार को परास्त कर देगें। कुछ लोग देहातों में पंचायतें भी बनाते फिरते हैं। इसका मतलब भी यही है कि सरकारी अदालतों की जड़ खोदी जाय; लेकिन कोई इन भलेमानुसों से पूछे कि क्या कानूनी गुत्थियाँ इन देहातियों के सुलझाये सुलझ जायगीं। जिस कानून के पढ़ने और समझने में उमरें गुजर जाती हैं, उसका व्यवहार यह हल जुत्ते क्या खाकर करेंगे। शासन की बुनियादी परम्परा सत्य और न्याय पर स्थित रही है और जब तक शासक लोग इस मूल तत्त्व को भूल न जायँ, राज्य की अवनति नहीं हो सकती। हमारी सरकार ने सदैव इस आदर्श को अपने सामने रक्खा है। प्रत्येक जाति को, प्रत्येक व्यक्ति को उस रेखा तक कर्म और वचन की पूर्ण स्वाधीनता दे दी है कि जहाँ तक उससे दूसरों को कोई हानि न हो। यही न्यायप्रियता हमारी सरकार को अमर बनाये हुये है। जोर दिया जा रहा है कि लोग सरकारी नौकरियाँ छोड़ दें। इस उद्देश्य का पूरा होना और भी कठिन है। मैं यह मानता हूँ कि कर्मचारी लोग बड़ी संख्या में इस नीति पर चलें तो सरकार के काम में बाधा पड़ सकती है लेकिन ऐसा होना असम्भव-सा जान पड़ता है। कर्मचारियों में अच्छे और बुरे दोनों ही हैं। जो बुरे हैं वे नौकरी कभी न छोड़ेंगे, इसलिए कि बेईमानी और रिश्वत के ऐसे अवसर कहीं नहीं मिल सकते; जो अच्छे हैं उनके लिए भी यहाँ जाति-सेवा और उपकार का बड़ा विस्तृत क्षेत्र हैं। उन्हें किसी पर अन्याय करने के लिए मजबूर नहीं किया जाता। सरकार किसी गुप्त और प्रजाघातक नीति का व्यवहार नहीं करती। ऐसी दशा में वे लोग पृथक नहीं हो सकते। नौकरी को गुलामी कहकर उसकी निन्दा की जाती है। लेकिन मैं उस वक्त तक इसे गुलामी नहीं समझ सकता, तब तक हमें अपने धर्म और आत्मा के विरुद्ध चलने पर विवश न किया जाय। जमींदारों ने बातें ध्यान से सुनीं। ऐसा जान पड़ता था कि इस विषय में सब-के-सब बाबू हरिबिलास से सहमत हैं। हाँ, शिवबिलास इन युक्तियों का प्रतिवाद करने के लिए अधीर हो रहे थे, पर इतने आदमियों के सामने मुँह खोलने का साहस न होता था।

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