कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
कैलास–यहाँ आज सोलहों दंड एकादशी है। सब-के-सब शोक में बैठे उसी अदालत के जल्लाद की राह देख रहे हैं। खाने-पीने का क्या जिक्र! तुम्हारे बेग में कुछ हो तो निकालो; आज साथ बैठकर खा लें, फिर तो जिंदगी भर का रोना है ही।
नईम–फिर तो ऐसी शरारत न करोगे?
कैलास–वाह यह तो आपने रोम-रोम में व्याप्त हो गई है। जब तक सरकार पशुबल से हमारे ऊपर शासन करती रहेगी, हम इसका विरोध करते रहेंगे। खेद यहीं है कि अब मुझे उसका अवसर ही न मिलेगा। किंतु तुम्हें २॰, ॰॰॰ रु. में से २॰ रु. भी न मिलेंगे। यहाँ रद्दियों के ढेर के शिवा और कुछ नहीं है।
नईम–अजी, मैं तुमसे २॰ हजार की जगह उसका पँचगुना वसूल कर लूँगा। तुम हो किस फेर में?
कैलास–मुँह धो रखिए!
नईम–मुझे रुपयों की जरूरत है। आओ, कोई समझौता कर लो।
कैलास–कुँवर साहब के २॰ हजार रुपये डकार गए, फिर भी अभी संतोष नहीं हुआ? बदहजमी हो जाएगी!
नईम–धन से धन की भूख बढ़ती है, तृप्ति नहीं होती। आओ, कुछ मामला कर लो! सरकारी कर्मचारी द्वारा मामला करने में और जेरबारी होगी।
कैलास–अरे, तो क्या मामला कर लूँ? यहाँ कागजों के सिवा और कुछ हो भी तो!
नईम–मेरा ऋण चुकाने-भर को बहुत है। अच्छा इसी बात पर समझौता कर लो कि मैं जो चीज चाहूँ, ले लूँ। फिर रोना मत।
कैलास–अजी तुम सारा दफ़्तर सिर पर उठा ले जाओ, घर उठा ले जाओ, मुझे पकड़ ले जाओ, और मीठे टुकड़े खिलाओ। कसम ले लो, जो जरा भी चूँ करूँ।
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