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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584
आईएसबीएन :978-1-61301-113

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


कैलास ने गर्दन छुड़ाते हुए कहा–क्या मेरे घाव पर नमक छिड़कने, मेरी लाश को पैंरों से ठुकराने आये हो?

नईम ने उसकी गर्दन को और जोर से दबाकर कहा–और क्या, मुहब्बत के यही तो मजे हैं।

कैलास-मुझसे दिल्लगी न करो। भरा बैठा हूँ, मार बैठूँगा।

नईम की आँखें सजल हो गई। बोला–आह जालिम, मैं तेरी जबान से यही कटु वाक्य सुनने के लिए विकल हो रहा था। जितना चाहें कोसो, खूब गालियाँ दो, मुझे इसमें मधुर संगीत का आनंद आ रहा है।

कैलास–और, अभी जब अदालत का कुर्क-अमीन घर-बार नीलाम करने आएगा, तो क्या होगा? बोलो अपनी, जान बचाकर तो अलग हो गए!

नईम–हम दोनों मिलकर खूँब तालियाँ बजाएँगे और उसे बंदर की तरह नचाएँगे।

कैलास–तुम अब पिटोगे मेरे हाथों से! जालिम, तुझे मेरे बच्चों पर भी दया न आयी?

नईम–तुम भी तो चले मुझी से जोर आजमाने। कोई समय था, जब बाजी तुम्हारे हाथ रहती थी। अब मेरी बारी है। तुमने मौका-महल तो देखा नहीं, मुझ पर पिल पड़े।

कैलास–सरासर सत्य की उपेक्षा करना मेरे सिद्धांत के विरुद्ध था।

नईम–और सत्य का गला घोंटना मेरे सिद्धांन्त के अनुकूल।

कैलास–अभी एक पूरा परिवार तुम्हारे गले मढ़ दूँगा, तो अपनी किस्मत को रोओगे। देखने में तुम्हारा आधा भी नहीं हूँ; लेकिन संतानोत्पति में तुम जैसे तीन पर भारी हूँ। पूरे सात हैं, कम न बेश।

नईम–अच्छा लाओ, कुछ खिलाते-पिलाते हो, या तकदीर का मरसिया ही गाये जाओगे? तुम्हारे सिर की कसम बहुत भूखा हूँ। घर से बिना खाना खाए ही चल पड़ा।

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