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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584
आईएसबीएन :978-1-61301-113

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


चौधरी ने कहा–महाराज, तुम साच्छात भगवान हो। तुम न आ जाते तो हम न बचते।

पंडित जी बोले–मैंने कुछ नहीं किया। वह सब ईश्वर की दया है।

चौधरी–अब हम तुम्हें कभी न जाने देंगे। जाकर अपने बाल-बच्चे को ले आओ।

पंडित–हाँ मैं भी यही सोच रहा हूँ। तुमको छोड़कर अब नहीं जा सकता।

मुल्लाओं ने मैदान खाली पाकर आस-पास के देहातों में खूब जोर बाँध रखा था। गाँव के गाँव मुसलमान होते जाते थे। उधर हिंदू सभा ने सन्नाटा खींच लिया था। किसी की हिम्मत न पड़ती थी कि इधर आये। लोग दूर बैठे हुए मुसलमानों पर गोला बारूद चला रहे थे। इस हत्या का बदला कैसे लिया जाय, यही उनके आगे सबसे बड़ी समस्या थी। अधिकारियों के पास बार-बार प्रार्थना-पत्र भेजे जा रहे थे कि इस मामले की छान-बीन का जाए, यही जवाब मिलता था कि हत्याकारियों का पता नहीं चलता। उधर पंडितजी के स्मारक के लिए चंदा भी जमा किया जा रहा था।

मगर इस नयी ज्योति ने मुल्लाओं का रंग फीका कर दिया। यहाँ एक ऐसे देवता का अवतार हुआ था, जो मुर्दों को जिला देता था, जो अपने भक्तों के कल्याण के लिए अपने प्राणों को बलिदान कर सकता था। मुल्लाओं के यहाँ यह विभूति कहाँ, यह चमत्कार कहाँ? इस ज्वलंत उपकार के सामने जन्नत और अखूवत (भ्रातभाव) की कोरी दलीलें कब ठहर सकती थीं? पंडितजी अब वह अपने ब्राह्मणत्व पर घमंड करने वाले पंडितजी न थे। उन्होंने शूद्रों और भीलों का आदर करना सीख लिया था। उन्हें छाती से लगाते हुए अब पंडित जी को घृणा न होती थी। अपना घर अँधेरा पाकर ही ये इसलामी दीपक की ओर झुके थे। जब अपने घर में सूर्य का प्रकाश हो गया, तो इन्हें दूसरों के यहाँ जाने की क्या जरूरत थी? सनातन धर्म की विजय हो गई। गाँव-गाँव में मंदिर बनने लगे और शाम-सबेरे मंदिरों से शंख और घंटे की ध्वनि सुनाई देने लगी। लोगों के आचरण आप ही आप सुधरने लगे। पंडितजी ने किसी को शुद्ध नहीं किया, उन्हें अब शुद्धि का नाम लेते शर्म आती थी–मैं भला इन्हें क्या शुद्ध करूँगा। पहले अपने को तो शुद्ध कर लूँ। ऐसी निर्मल, पवित्र आत्माओं को शुद्धि के ढोंग से अपमानित नहीं कर सकता।

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