कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
सूर्योदय का समय था। पूर्व दिशा से प्रकाश की छटा ऐसे दौड़ी चली आती थी, जैसे आँख में आँसूओं की धारा। ठंडी हवा कलेजे पर यों लगती थी, जैसे किसी करुण क्रन्दन की ध्वनि। सामने का मैदान दुःखी हृदय की भाँति ज्योति के बाणों से बिंध रहा था। घर में वह निस्तब्धता छायी हुई थी, जो गृहस्वामी के गुप्त रोदन की सूचना देती है। न बालकों का शोरगुल था, और न माता की शांति प्रसारिणी शब्द ताड़ना। जब दीपक बुझ रहा हो, तो घर में प्रकाश कहाँ से आये? यह आशा का प्रभाव नहीं, शोक का प्रभाव था, क्योंकि आज ही कुर्कअमीन कैलास की सम्पत्ति को नीलाम करने के लिए आने वाला था।
उसने अंतर्वेदना से विकल होकर कहा–आह! आज मेरे सार्वजनिक जीवन का अंत हो जाएगा। जिस भवन का निर्माण करने में अपने जीवन के २५ वर्ष लगा दिए, वह आज नष्ट-भ्रष्ट हो जाएगा। पत्र की गर्दन पर छुरी जाएगी, मेरे पैरों में उपहास और अपवास की बेड़ियाँ पड़ जाएँगी, पत्र में कालिमा लग जाएगी, यह शांति कुटीर उजड़ जाएगी, यह शोकाकुल परिवार किसी मुरझाए हुए फूल की पंखड़ियों की भाँति बिखर जाएगा। संसार में उसके लिए कहीं आश्रय नहीं है। जनता की स्मृति चिरस्थायी नहीं होती, अल्प काल में मेरी सेवाएँ विस्मृति के अधंकार में लीन हो जाएँगी। किसी को मेरी सुध भी न रहेगी, कोई मेरी विपत्ति पर आँसू बहानेवाला भी न होगा।
सहसा उसे याद आया कि आज के लिए अभी अग्रलेख लिखना है। आज अपने सुहृद पाठकों को सूचना दूँ कि इस पत्र के जीवन का अंतिम दिवस है, इसे फिर आपकी सेवा में पहुँचने का सौभाग्य न प्राप्त होगा। हमसे अनेक भूलें हुई होगी, आज उनके लिए आप से क्षमा मागते है। आपने हमारे प्रति तो सहवेदना और सहृदयता प्रकट की है, उसके लिए हम सदैव आपके कृतज्ञ रहेंगे। हमें किसी से कोई शिकायत नहीं है। हमें इस अकाल मृत्यु का दुःख नहीं है; क्योंकि यह सौभाग्य उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अपने कर्तव्य पथ पर अविचल रहते है। दुःख यही है कि हम जाति के लिए इससे अधिक बलिदान करने में समर्थ न हुए। इस लेख को आदि से अंत तक सोचकर वह कुर्सी से उठा ही था कि किसी के पैरों की आहट मालूम हुई। गर्दन उठाकर देखा, तो मिरजा नईम था। वही हँसमुख चेहरा, वही मृदु मुस्कान, वही कीड़ामय नेत्र। आते ही कैलास के गले से लिपट गया।
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