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कहानी संग्रह >> प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह)

प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :257
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8586
आईएसबीएन :978-1-61301-114

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मनुष्य की प्रवृत्ति और समय के साथ बदलती नीयत का बखान करती 15 कहानियाँ


चौधरी ने ठंडी साँस लेकर कहा–बेटी! तुमको मुझसे यह कहते लाज नहीं आती? वेद-शास्त्र में मुझे तुम्हारे गाँव के कुएँ का पानी पीना भी मना है। तुम्हारी ड्योढ़ी में पैर रखने का निषेध है। क्या तुम मुझे नरक में ढकेलना चाहती हो?

गंगाजली उत्तर के लिए पहले ही से तैयार थी, बोली–मैं अपने गहने तुम्हें दिये थोड़े ही देती हूँ। इस समय लेकर काम चलाओ, चैत में छुड़ा देना।

चौधरी ने कड़ककर कहा–यह मुझसे न होगा।

गंगाजली उत्तेजित होकर बोली–तुमसे यह न होगा, तो मैं आप ही जाऊँगी, मुझसे घर की यह दुर्दशा नहीं देखी जाती।

चौधरी ने झुँझलाकर कहा–बिरादरी को कौन मुँह दिखाऊँगा?

गंगाजली ने चिढ़कर कहा–बिरादरी में कौन ढिंढोरा पीटने जाता है?

चौधरी ने फैसला सुनाया–जग हँसाई के लिए मैं अपना धर्म न बिगाड़ूँगा।

गंगाजली बिगड़कर बोली–मेरी बात नहीं मानोगे तो तुम्हारे ऊपर मेरी हत्या पड़ेगी। मैं आज ही बेतवा नदी में कूद पड़ूंगी। तुमसे चाहे घर में आग लगाते देखा जाय, पर मुझसे न देखा जाएगा।

चौधरी ने ठंडी साँस लेकर कातर स्वर में कहा–बेटी, मेरा धर्म नाश मत करो। यदि ऐसा ही है, तो अपनी किसी भावज के गहने माँगकर लाओ।

गंगाजली ने गंभीर भाव से कहा–भावजों से कौन अपना मुँह नुचवाने जाएगा? उनको फिकर होती, तो क्या मुँह में दही जमा था, कहती नहीं?

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