कहानी संग्रह >> प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह) प्रेम पूर्णिमा (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मनुष्य की प्रवृत्ति और समय के साथ बदलती नीयत का बखान करती 15 कहानियाँ
‘अधिक नहीं, उनमें से ५॰ रुपये दे दूँगी।’
‘रुपये क्या होंगे, कोई उससे अच्छी चीज दो।’
‘बेटी! और क्या दूँ? जब तक जीऊंगी, तुम्हारा यश गाऊँगी।’
‘नहीं, इसकी मुझे आवश्यकता नहीं।’
‘बेटी, इसके सिवा मेरे पास क्या है?’
‘मुझे आशीर्वाद दो। मेरे पति बीमार हैं, वे अच्छे हो जाएँ।’
‘क्या उन्हीं को रुपये मिले हैं?’
‘हाँ, वे उसी दिन से खोज रहे हैं।’
वृद्धा घुटनों के बल बैठ गई और आँचल फैलाकर कम्पित स्वर से बोली–देवी, इनका कल्याण करो।
भामा ने फिर देवी की ओर आशंकित दृष्टि से देखा। उनके दिव्य रूप पर प्रेम का प्रकाश था। आँखों में दया की आनंद-दायिनी झलक थी। उस समय भामा ने अन्त:करण में कहीं स्वर्गलोक से यह ध्वनि सुनाई दी–जा, तेरा कल्याण होगा।
संध्या का समय है। भामा ब्रजनाथ के साथ इक्के पर बैठ तुलसी के घर उसकी थाती लौटाने जा रही है। ब्रजनाथ के बड़े परिश्रम की कमाई तो डाक्टर की भेंट हो चुकी है, लेकिन भामा ने एक पड़ोसी के हाथ अपने कानों के झुमके बेचकर रुपये जुटाए हैं। जिस समय झुमके बनकर आये थे, भामा बहुत प्रसन्न हुई थी। आज उन्हें बेचकर वह उससे अधिक प्रसन्न है।
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