सदाबहार >> रंगभूमि (उपन्यास) रंगभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है
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बालकों पर प्रेम की भांति द्वेष का असर भी अधिक होता है। जबसे मिठुआ और घीसू को मालूम हुआ था कि ताहिर अली हमारा मैदान जबरदस्ती ले रहे हैं, तब से दोनों उन्हें अपना दुश्मन समझते थे। चतारी के राजा साहब और सूरदास को स्वयं शंका थी कि यद्यपि राजा साहब ने आश्वासन दिया, पर शीघ्र ही यह समस्या फिर उपस्थित होगी। जॉन सेवक साहब इतनी आसानी से गला छोड़नेवाले नहीं है। बजरंगी, नायकराम आदि भी इसी प्रकार की बातें करते रहते थे। मिठुआ और घीसू इन बातों को बड़े प्रेम से सुनते, और उनकी द्वेषाग्नि और भी प्रचंड होती थी। घीसू जब भैंसे लेकर मैदान जाता तो जोर-जोर से पुकारता–देखें, कौन हमारी जमीन लेता है, उठाकर ऐसा पटकूं कि वह भी याद करे। दोनों टांगे तोड़ दूंगा। कुछ खेल समझ लिया है ! वह जरा था भी कड़े दम, कुश्ती लड़ता था। बजरंगी खुद भी जवानी में अच्छा पहलवान था। घीसू को वह शहर के पहलवानों की नाक बना देना चाहता था, जिससे पंजाबी पहलवानों को भी ताल ठोकने की हिम्मत न पड़े, दूर-दूर जाकर दंगल मारे, लोग कहें–‘यह बजरंगी का बेटा हैं।’ अभी से घीसू को अखाड़े भेजता था। घीसू अपने घमंड में समझता था कि मुझे जो पेंच मालूम हैं, उनसे जिसे चाहूं, गिरा दूं। मिठुआ कुश्ती तो न लड़ता था; पर कभी-कभी अखाड़े की तरफ जा बैठता था। उसे अपनी पहलवानी की डींग मारने के लिए इतना काफी थी। दोनों जब ताहिर अली को कहीं देखते, तो सुना-सुनाकर कहते–दुश्मन जाता है, उसका मुंह काला। मिठुआ कहता–जै शंकर, कांटा लगे न कंकर, दुश्मन को तंग कर। घीसू कहता–बम भोला, बैरी के पेट में गोला, उससे कुछ न जाए बोला।
ताहिर अली इन छोकरों की छिछोरी बातें सुनते और अनसुनी कर जाते। लड़कों के मुंह क्या लगे। सोचते–कहीं ये सब गालियां दे बैठें, तो इनका क्या बना लूंगा। वे दोनों समझते, डर के मारे नहीं बोलते, और शेर हो जाते। घीसू मिठुआ पर उन पेंचों का अभ्यास करता, जिनसे वह ताहिर अली को पटकेगा। पहले यह हाथ पकडा; फिर अपनी तरफ खींचा; तब वह हाथ गर्दन में डाल दिया और अडंगी लगाई, बस चित। मिठुआ फौरन गिर पड़ता था, और उसे इस पेंच के अद्भुत प्रभाव का विश्वास हो जाता था।
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