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रंगभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :1153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8600
आईएसबीएन :978-1-61301-119

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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है


एक दिन दोनों ने सलाह की–चलकर मियांजी के लड़कों की खबर लेनी चाहिए। मैदान में जाकर जाहिर और जाबिर को खेलने के लिए बुलाया, और खूब चपतें लगाईं। जाबिर छोटा था, उसे मिठुआ ने दाबा। जाहिर और घीसू का जोड़ था; लेकिन घीसू अखाड़ा देखे हुए था, कुछ दांव-पेच जानता ही था, आन-की-आन में जाहिर को दबा बैठा। मिठुआ ने जाबिर के चुटकियां काटनी शुरू कीं। बेचारा रोने लगा। घीसू ने जाहिर को कई घिस्से दिए, वह भी चौंधिया गया; जब देखा कि यह तो मार ही डालेगा, तो उसने फरियाद मचाई। इन दोनों का रोना सुनकर नन्हा-सा साबिर एक पतली-सी टहनी लिए, अकड़ता हुआ पीड़ितों की सहायता करने आया, और घीसू को टहनी से मारने लगा। जब इस शस्त्र-प्रहार का घीसू पर कुछ असर न हुआ, तो उसने इससे ज्यादा चोट करनेवाला बाण निकाला–घीसू पर थूकने लगा। घीसू ने जाहिर को छोड़ दिया, और साबिर के दो-तीन तमाचे लगाए। जाहिर मौका पाकर फिर उठा, और अबकी ज्यादा सावधान घीसू से चिमट गया। दोनों में मल्ल-युद्ध होने लगा। आखिर घीसू ने उसे फिर पटका और मुश्कें चढ़ा दीं। जाहिर को अब रोने के सिवा कोई उपाय न सूझा, जो निर्बलों का अंतिम आधार है। तीनों की आर्तध्वनि माहिर अली के कान में पहुंची। वह इस समय स्कूल जाने को तैयार थे। तुरंत किताबें पटक दीं और मैदान की तरफ दौड़े। देखा, तो जाबिर और जाहिर नीचे पड़े हाय-हाय कर रहे हैं और साबिर अलग बिलबिला रहा है ! कुलीनता का रक्त खौल उठा; मैं सैयद पुलिस के अफसर का बेटा, चुंगी के मुहर्रिर का भाई, अंगरेजी के आठवें दरजे का विद्यार्थी ! यह मूर्ख, उजड्ड अहीर का लौंडा, इसकी इतनी मजाल कि मेरे भाइयों को नीचा दिखाएं ! घीसू के एक ठोकर लगाई और मिठुआ के कई तमाचे। मिठुआ तो रोने लगा; किंतु घीसू चिमड़ा था। जाहिर को छोड़कर उठा, हौसलें बढ़े हुए थे, दो मोरचे जीत चुका था, ताल ठोककर माहिर अली से भी लिपट गया। माहिर का सफेद पाजामा मैला हो गया, आज ही जूते में रोहन लगाया था, उस पर गर्द पड़ गई, संवारे हुए बाल बिखर गए, क्रोधोन्मत्त होकर घीसू को इतनी जोर से धक्का दिया कि वह दो कदम पर जा गिरा। साबिर, जाहिर, जाबिर, सब हंसने लगे। लड़कों की चोट प्रतिकार के साथ ही गायब हो जाती है। घीसू इनको हंसते देखकर और भी झुंझलाया; फिर उठा और माहिर अली से लिपट गया। माहिर ने उसका टेंटुआ पकड़ा और जोर से दबाने लगे। घीसू समझा, अब मरा, यह बिना मारे न छोड़ेगा, मरता क्या न करता, माहिर के हाथ में दांत गड़ा दिए, तीन दांत गड़ गए, खून बहने लगा। माहिर चिल्ला उठे, उसका गला छोड़कर अपना हाथ छुड़ाने का यत्न करने लगे; मगर घीसू किसी भांति न छोड़ता था। खून बहते देखकर तीनों भाइयों ने फिर रोना शुरू किया। जैनब और रकिया यह हंगामा दरवाजे पर आ गईं। देखा तो समरभूमि रक्त से प्लावित हो रही है, गालियां देती हुई ताहिर अली के पास आईं। जैनब ने तिरस्कार भाव से कहा–तुम यहां बैठे खालें नोच रहे हो, कुछ दीन-दुनिया की भी खबर है ! वहां अहीर का लौंडा हमारे लड़कों का खून-खच्चर किए डालता है। मुए को पकड़ पाती, तो खून ही चूस लेती।

रकिया–मुआ आदमी है कि देव-बच्चा है ! माहिर के हाथ में इतनी जोर से दांत काटा है कि खून के फौवारे निकल रहे हैं। कोई दूसरा मर्द होता, तो इसी बात पर मुए को जीता गाड़ देता।

जैनब–कोई अपना होता, तो इस वक्त मूड़ीकाटे को कच्चा ही चबा जाता।

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